जलवायु परिवर्तन पर ग्रेटा और ट्रंप फिर आमने-सामने, क्‍लाइमेट चेंज पर ग्रेटा और ट्रंप फिर आमने-सामनेजानें- सद्दाम के समय US का साथ देने वाला इराकी शिया क्‍यों हुआ ट्रंप से नाराज, तीन भागों में बंटा इराक

ईरान और अमेरिका संघर्ष के केंद्र में इराक बेचारा अनायास ही बीच में पीसता रहा। इराक में अमेरिकी सेनाओं के साथ इराकियों की भी जान खतरे में है। इसलिए यहां एक तबका अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी का विरोध करता रहा है, जबकि एक तबका अमेरिकी सेनाओं के बने रहने के पक्ष में है। इराक को एक कोना ऐसा जिसे इससे कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में यह सवाल उत्‍पन्‍न होता है कि आखिर 2003 के इराक में और अब के इराक में क्‍या फर्क आया है। एक समय दमदार इराक कैसे लाचारी की कगार पर पहुंच गया। एक बड़ा सवाल और भी है कि सद्दाम हुसैन के समय जो शिया अमेरिका के साथ थे आखिर वह अब क्‍यों नाराज हैं। आज हम आपको बताते हैं कि इराक के इन तीनों कोनें के बारे में। इन कोनों में आखिर अमेरिका के क्‍या हित छिपे हैं। क्‍याें अमेरिका से नाराज हुए शिया।

शिया और सुन्‍नी के खेल में फंसा कुर्द
दरअसल, इराक की सामाजिक व्‍यवस्‍था थोड़ी जटिल है। सामाजिक आधार पर इराक तीन हिस्‍सों में विभक्‍त है। इराक के बड़े हिस्‍से में शिया का प्रभुत्‍व है। एक बड़ा हिस्‍सा सुन्‍नी का है। एक इलाका कुर्दों का है। 2003 तक यानी सद्दाम हुसैन के दौर में शिया और कुर्द एककदम हाशिए पर थे।

संख्‍याबल के लिहाज से शिया सबसे अधिक हैं। इसके बाद सुन्‍नी हैं और तीसरे नंबर पर कुर्द हैं। इराक में 51 फीसद आबादी शिया लोगों की हैं। इसके बाद 42 फसीद सुन्‍नी हैं। 7 फसीद आबादी कुर्द एवं अन्‍य हैं। सद्दाम के समय सिया की आबादी शुन्‍नी से कम होने के बावजूद सत्‍ता पर काबिज रहे। उस वक्‍त शुन्‍नी और कुर्द हासिए पर थे। 2003 में जब अमेरिका ने सद्दाम पर हमला किया तो सुन्‍नी अमेरिका के खिलाफ जंग लड़ रहे थे और शुन्‍नी और कुर्द अमेरिका के पक्ष में खड़े थे।

सद्दाम के बाद बदल गए सत्‍ता के केंद्र
लेकिन अब यह लड़ाई उल्टी हो गई है। ईरान के कारण अब अमेरिका का साथ देने वाला शिया अमेरिका के खिलाफ हो गया है। इराक में शिया की बड़ी आबादी अमेरिका के खिलाफ हो गई है। इस समय इराक में शिया की सरकार है। सेना में भी शिया का प्रभुत्‍व है।

ऐसे में सुन्‍नी की स्थिति वही हो गई है, जो सद्दाम के समय शिया की थी। ईरान और अमेरिका के संघर्ष में जहां इराक का शिया ईरान के साथ खड़ा है, वहीं सुन्‍नी अमेरिका के साथ खड़े हैं। एेसे में यह संभावना प्रबल हो गई है कि इराक तीन हिस्‍सों में पूरी तरह से बंट गया है। दरअसल, सद्दाम के बाद यहां की सत्‍ता में सुन्‍नी का प्रतिनिधित्‍व नहीं मिला। इससे सुन्‍नी लोगों में रोष भी है। अमरीका के लिए मध्य-पूर्व में सबसे बड़ी चुनौती अब ईरान है। इराक़ की शिया सरकार और ईरान के संबंध को अलग करना अमरीका के लिए बड़ी चुनौती है। अब अमरीका कोशिश करेगा कि इराक़ की राजनीति में केवल शियाओं का ही वर्चस्व ना रहे, ऐसे में अमरीका इराक़ में सुन्नियों का पक्ष लेता दिख सकता है।

बता दें कि वर्ष 2003 के बाद से अब तक इराक के सभी प्रधानमंत्री शिया मुसलमान ही बने। सद्दाम के बाद सुन्नी सत्‍ता के हाशिए पर आ गए। 2003 से पहले सद्दाम के इराक़ में सत्‍ता पर सुन्नियों का ही वर्चस्व रहा। इतना ही नहीं सेना से लेकर सत्‍ता तक में सुन्नी मुसलमानों का ही वर्चस्‍व था। लेकिन अब तस्‍वीर उलट गई है। अब सत्‍ता शिया मुसलमानों के पास है।