अयोध्या केस: दस्तावेज दूसरी भाषाओं में, ट्रांसलेशन के बाद अब 5 Dec को होगी सुनवाई

लखनऊ.सुप्रीम कोर्ट में बाबरी विवाद पर 7 साल बाद शुक्रवार से सुनवाई शुरू हो गई। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अभी दस्तावेजों का ट्रांसलेशन नहीं हो पाया है, इसलिए इन्हें पेश नहीं किया जा सकता। इस पर कोर्ट ने ट्रांसलेशन के लिए तीन महीने का वक्त दे दिया। इस केस से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज अरबी, उर्दू, फारसी और संस्कृत में हैं। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 5 दिसंबर तय की है। बता दें कि जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की स्पेशल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 में आए फैसले के बाद, पिछले करीब 7 साल से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। पहले स्पष्ट करें, कौन किसकी तरफ से पक्षकार…

– शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान सबसे पहले एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील दीं। उन्होंने सरकार का पक्ष रखते हुए सुनवाई जल्द पूरी करने की मांग की।

– इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ऑब्जेक्शन लिया, कहा कि यह सुनवाई सही प्रॉसेस का इस्तेमाल किए बगैर हो रही है।
– सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सभी पिटीशनर्स से पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है।
– इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस केस से जुड़े कुछ पक्षकारों का निधन हो गया है, इसलिए उन्हें बदलने की जरूरत है।

6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा​या गया…
– राम मंदिर मुद्दे ने 1989 के बाद तूल पकड़ा। इस मुद्दे की वजह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है।
– हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढांचा बना था।
– राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया गया था। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या दिया था फैसला?
– 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एसयू खान और डीवी शर्मा की बेंच ने मंदिर मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था।
– बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

कौन हैं 3 पक्ष, क्या था फॉर्मूला?
निर्मोही अखाड़ा:विवादित जमीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह।
रामलला विराजमान:एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह।
सुन्नी वक्फ बोर्ड:विवादित जमीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा।

SC में मामला क्यों पहुंचा?
– इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या की विवादित जमीन पर दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की।

– दूसरी तरफ, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद कई और पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशंस दायर कर दी।
– इन सभी पिटीशंस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

केस से जुड़े हजारों कागजात
– केस से जुड़े हजारों कागजात सुप्रीम कोर्ट में जमा किए गए हैं। इनमें अरबी, फारसी और संस्कृत में भी कागजात शामिल हैं। इनका ट्रांसलेशन भी किया जाना है। कागजात के डिजिटलाइजेशन में भी लंबा वक्त लगता है।

शिया वक्फ बोर्ड ने पेशकश- विवादित जगह बने मंदिर
– उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की ओर से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया है। इसमें विवादित जगह पर राम मंदिर और इससे कुछ दूरी पर मस्जिद बनाने की पेशकश की गई है।

– उनका कहना है कि विवादित ढांचे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है। यह मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी। वह शिया था।
– उन्होंने कहा कि जितने भी मुतवल्ली रहे, सब शिया बोर्ड से ही रहे हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य है।

बाबर तो कभी अयोध्या गया ही नहीं। बाबर पर लिखी गई किताब बाबरनामा में भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है।
– रिजवी ने कहा कि मस्जिद पर शियाओं का हक है। इससे जुड़े फैसले भी शिया बोर्ड ही लेगा। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में सुन्नी वक्फ बोर्ड को पार्टी बनाना गलत है।

– विवाद शांति से निपटाने के लिए शिया वक्फ बोर्ड तैयार है। इसके के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुआई में हाईलेवल कमेटी बनाई जाए। विवादित जगह पर मंदिर बने। मस्जिद के लिए मुस्लिम बहुल इलाके में कहीं जगह दी जाए।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी को एतराज
– बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी ने शिया वक्फ बोर्ड को ज्यादा अहमियत देने से इनकार कर दिया। जिलानी ने कहा- ये सिर्फ अपील है और इस एफिडेविट का कानून में कोई महत्व नहीं है।
– वहीं, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि मेरे हिसाब से शिया वक्फ बोर्ड ने एक अच्छा मैसेज दिया है।