शहर में रोकेंगे 1 लाख गाड़ियों का काला धुआं इसी से 25 फीसदी कम हो जाएंगी घातक गैसें

रायपुर.हवा में प्रदूषण के मामले में देश में हमेशा टॉप-10 में बने रहनेवाले रायपुर में इसकी बड़ी वजह शहर की सड़कों से रोजाना गुजरनेवाली 7 लाख गाड़ियां हैं। नेशनल एन्वॉयरमेंट इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च सेंटर (नीरी) की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक रायपुर की हवा में प्रदूषण का 60 फीसदी हिस्सा ऐसे वाहन हैं, जो अनफिट होने की वजह से रोजाना हवा में घातक गैसें और काला धुआं घोल रहे हैं। सरकारी एजेंसियों के सर्वे में यह बात आई है कि शहर में एक लाख से ज्यादा ऐसी गाड़ियां हैं, जो खटारा होने की वजह से इतना धुआं छोड़ रही हैं कि अगर उन्हीं पर कंट्रोल कर लिया जाए तो हवा में 25 फीसदी घातक गैसें कम हो सकती हैं। 59 केंद्रों में गाड़ियों की जांच हो रही है…

राजधानी में पहली बार वाहन प्रदूषण की जांच सख्ती से की गई है। भास्कर की पड़ताल के मुताबिक पर्यावरण संरक्षण मंडल और परिवहन विभाग की इस पूरी कवायद के पीछे यह तथ्य है कि रायपुर में रोजाना एक लाख से ज्यादा गाड़ियों से प्रदूषण तय मात्रा से बहुत ज्यादा निकल रहा है। प्रशासन का मानना है कि केवल इतनी गाड़ियां शहर की हवा में उतना धुआं घोल रही हैं, जितना यहां की 600 बड़ी-छोटी फैक्ट्रियों से निकलता है। इसे रोकने के लिए यहां 59 केंद्रों में गाड़ियों की जांच हो रही है। हर दिन दिन करीब आठ हजार से ज्यादा गाड़ियां जांची जा रही हैं। शुरुआत में जांच के लिए ऐसी गाड़ियां आ रही हैं, जो अच्छी कंडीशन में हैं। इसलिए अभी औसतन 2 फीसदी गाड़ियां ही प्रदूषण जांच में फेल हुई हैं। दावा किया जा रहा है कि ऐसे ज्यादातर लोग जिन्हें पता है कि उनके वाहन खटारा हैं, जांच सेंटरों में नहीं आ रही हैं। जांच पूरी होने के बाद जब कार्रवाई शुरू होगी, तब उन्हें खड़ा करवा दिया जाएगा। इस प्रक्रिया में करीब 3 माह लगेंगे। इसके बाद हवा में प्रदूषण काफी कम होने की उम्मीद की जा सकती है।
वाहन प्रदूषण से कम उम्र में कैंसर…
अंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक और कैंसर विशेषज्ञ डॉ. विवेक चौधरी ने बताया कि पिछले दो साल से कैंसर के ऐसे पेशेंट आ रहे हैं, जिनकी उम्र 25 साल या कम है। अंबेडकर अस्पताल में आंकड़े इकट्ठा किए जा रहे हैं।
एक गाड़ी 960 किमी में उतनी आक्सीजन खींचती है जितनी कोई व्यक्ति सालभर में…
पं. रविशंकर विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलरों के अनुसार एक वाहन 960 किलोमीटर चलने पर उतनी ऑक्सीजन को प्रदूषित करता है, जितना एक व्यक्ति एक साल में करता है। भारत में 80 प्रतिशत यातायात तथा 50 फीसदी आवागमन गाड़ियों पर निर्भर है। इस वजह से रायपुर समेत देशभर में डीजल का उपयोग, पेट्रोल की तुलना में लगभग सात गुना ज्यादा हो रहा है। अर्थात, गाड़ियां लोग गाड़ियों का उपयोग जितना कम करेंगे, प्रदूषण उतना ही कम होगा।
गैसें जिनमें आएगी कमी…
प्रदूषण जांच सेंटरों से मिली जानकारी के अनुसार गाड़ियों से कार्बन मोनो ऑक्साइड, बिना जले हाइड्रोकार्बन यौगिक, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, बेंजीन एवं एल्डिहाइड निकलते हैं। गाड़ियों के काले धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड 90 प्रतिशत तक हो सकती है, जो लोगों के लिए बेहद खतरनाक है। डीजल से चलने वाली गाड़ियों में कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा बिना जले हाइड्रोकार्बन पेट्रोल की तुलना में कम निकलते हैं, लेकिन इनमें नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सूक्ष्म कण, एल्डिहाइड तथा गंधक निकल रहा है। ये भी बेहद हानिकारक हैं।