DUSU result 2017: NSUI ने तोड़ा 6 साल का मिथक, रोका ABVP का विजयी रथ

दिल्‍ली यूनिवसिर्टी स्‍टूडेंट्स यूनियन इलेक्‍शन 2017 में NSUI ने ABVP के विजय रथ को रोकने के साथ ही कई मिथक भी तोड़े हैं. NSUI ने इस बार डूसू में जीत दर्ज कर 6 साल से चली आ रही परंपरा को भी किनारे लगा दिया है. साथ ही चार साल बाद उसने अध्‍यक्ष पद पर जीत हासिल की है.

2011 से लेकर 2016 तक के आंकड़ों के अनुसार डूसू चुनाव केंद्र की सत्‍ता से सीधे-सीधे प्रभावित होती है. पिछले 6 साल के इन आंकड़ों में जब केंद्र में संप्रग सरकार थी तो एनएसयूआई के हाथ में डूसू की बागडोर थी.जैसे ही केंद्र में भाजपा आई तो डूसू में एबीवीपी का परचम लहराया.

इस बार एनएसयूआई के रॉकी तुसीद सहित अन्‍य उम्‍मीदवारों ने इन आंकड़ों पर ब्रेक लगा दिया है. वहीं इन पर पड़ने वाले कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों के प्रभाव को भी नाकाफी साबित किया है.

कांग्रेस की छात्र ईकाई है एनएसयूआई कांग्रेस की छात्र ईकाई है एनएसयूआई

ये हैं डीयू में पिछले सालों में जीत के आंकड़े और केंद्र में सत्‍ता

साल सीटें डीयू में जीत केंद्र में सत्‍ता

2011 अध्‍यक्ष एनएसयूआई कांग्रेस गठबंधन(यूपीए)

2012 अध्‍यक्ष, उपाध्‍यक्ष, सचिव एनएसयूआई यूपीए

2013 अध्‍यक्ष, उपाध्‍यक्ष, सं-सचिव एबीवीपी भाजपा द्वारा पीएम पद के लिए मोदी का नाम घोषित किए जाने के बाद

2014 चारों पद एबीवीपी भाजपा सरकार

2015 चारों पद एबीवीपी भाजपा

2016 अध्‍यक्ष, उपाध्‍यक्ष, सचिव एबीवीपी भाजपा

डीयू के पूर्व सीईसी डीएस रावत का कहना है कि डीयू में ईवीएम से फेयर इलेक्‍शन होता है. ये संयोग है कि जिसकी केंद्र में सरकार है, अक्‍सर उसके छात्र विंग से अध्‍यक्ष चुना गया है. लेकिन कैंपस में किसी भी राजनीतिक दल को प्रवेश नहीं है. ऐसे में यह मिथक इस बार टूट गया है.

ABVP के राष्‍ट्रीय मीडिया संयोजक साकेत बहुगुणा का कहना है कि राजनीतिक पार्टी के विचारों का फर्क पड़ता है. भाजपा राष्‍ट्रवाद और देशभक्ति के मुद्दे के लिए लड़ता है एबीवीपी भी उन्‍हीं मुद्दों के लिए लड़ता है. ऐसे में विचारधारा, केंद्र में मजबूती और विचार इस चुनाव को प्रभावित करते हैं.

हालांकि किसी भी राजनीतिक दल का दखल कैंपस में नहीं होता. एबीवीपी के कार्यकर्ताओं की मेहनत और कैंपस के मुद्दों को उठाने की प्रवृत्ति के कारण छात्र वोट करते हैं. ऐसे में इस बार का चुनाव उस मिथक को तोड़ता है.

बता दें कि 2011 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो डूसू में अध्‍यक्ष पद पर एनएसयूआई के उम्‍मीदवार की जीत हुई. 2012 में भी एनएसयूआई जीती. जबकि 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित करते ही डूसू में तीन सीटों पर एबीवीपी का कब्‍जा हुआ था.

इसके बाद केंद्र में भाजपा सरकार के बाद 2014 में चारों सीटों पर एबीवीपी का कब्‍जा रहा. 2015 में भी एबीवीपी ने सभी सीटें हथिया लीं. इसके बाद 2016 में भी डूसू चुनावों में एबीवीवी का डंका बजा था.