क्यों थमने का नाम नहीं ले रहा है केरल में राजनीतिक हिंसा का दौर
कोझिकोड में आरएसएस के दफ्तर में हमले के बाद केरल में राजनीतिक हिंसा – प्रतिहिंसा की आशंका बढ़ गयी है. भारत का सबसे शिक्षित राज्य केरल सियासी टकराव के वैसे दौर से गुजर रहा है, जहां दो परस्पर विचारधारा के बीच का संघर्ष चुनाव तक सीमित न होकर खूनी टकराव का रूख अख्तियार कर लेती है. हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में जबर्दस्त वृद्धि देखने को मिली है. सवाल यह कि तरक्की की लिहाज से देश में अव्वल आने वाले राज्य की राजनीति में ऐसा क्या हो गया है कि खूनी रंजिश का दौर थमने के नाम नहीं ले रहा है.
कल आरएसएस के एक पदाधिकारी ने केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का सिर कलम करने पर एक करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा कर दी. कल देर रात कोझिकोड स्थित आरएसएस कार्यालय में बम से हमला बोला गया . इस हमले में चार कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गये. कोझिकोड के सीपीएम ऑफिस में आग लगाने की खबर सामने आयी है.
केरल में सियासी हत्याओं का दौर करीब पांच दशक से भी ज्यादा पुराना है. कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ माने जाने वाले इस प्रदेश में सबसे ज्यादा संघ की शाखाएं लगती हैं. अब जब केंद्र में भाजपा ( एनडीए) की सरकार है, और केरल में सीपीएम के नेतृत्व में बनी एलडीएफ सरकार है तो राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से जटिल हो गयी है. कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बीच टकराव का इतिहास पुराना है. 1940 से ही केरल में संघ और कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भिडंत की घटना देखी गयी है. 40 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केरल में अपनी उपस्थिति को लेकर गतिविधियां बढ़ा रही थी. उस दौरान टकराव की घटनाएं देखने को मिली. आरएसएस कार्यकर्ताओं के मुताबिक 1948 में तिरूअंतपुरम में गोलवलकर की एक सभा में हमला हुआ. तब से ही दो परस्पर विरोधी विचारधारा के बीच संघर्ष जारी है.
इतिहासकार मानते हैं कि केरल के कन्नूर जिले में सबसे ज्यादा राजनीतिक हिंसा की घटना हुई है. आरटीआई के खुलासे से पता चला है कि कन्नूर में जनवरी 1997 से मार्च 2008 के बीच 56 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. सीपीएम नेता वी एस अच्युतानंद भी कन्नूर को राजनीतिक हिंसा का गढ़ मानते हैं.बताया जा रहा है कि 1977 में आपाताकाल के बाद आरएसएस के शाखाओं में जबर्दस्त वृद्धि देखने को मिली. कम्युनिस्ट पार्टी से भारी संख्या में लोग संघ के शाखाओं में आने लगे. मार्च 2015 तक दोनों ओर से चले खूनी वार में दोनों ओर से 200 कार्यकर्ताओं की जान गयी है.
ज्ञात हो कि मरने वालों में सबसे ज्यादा थिया जाति से हैं, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं. थिया समुदाय के लोगों के बीच कभी सीपीएम की अच्छी पकड़ रहती थी. इस खूनी टकराव में जहां कम्युनिस्ट पार्टियां संघ पर आरोप लगाती है, वहीं संघ के पदाधिकारी कहते हैं हमारी बढ़ती जनाधार को देख सीपीएम खेमें में घबराहट पैदा कर रही है. इसे रोकने के लिए वे हिंसा का सहारा लेते है.