क्या मध्यप्रदेश में भाजपा के भीतर खड़ा हो रहा है विपक्ष?

भोपाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खुलेआम कहा कि मध्यप्रदेश में नौकरशाही हावी है। लेकिन कोई ऐसा पहला मौका नहीं था जब शिवराज सिंह चौहान को नौकरशाही के जरिए घेरा गया हो। इससे पहले भी कई दफा उन पर हमले नौकरशाही के जरिए किए गए हैं। उन पर कई दफा पार्टी और संघ के भीतर से भी आरोप लगते रहे हैं कि उनका रवैया नौकरशाही के प्रति लचीला है, जिसके कारण प्रदेश में सरकार की पकड़ ढीली होती जा रही है। आरोप कुछ भी हों, लेकिन भाजपा के भीतर से जिस तरह से निशाने उठ रहे हैं, यह इस बात का संकेत जरूर दे रहे हैं कि सरकार के खिलाफ अब एक विपक्ष भाजपा के भीतर से ही खड़ा हो रहा है या फिर खड़ा किया जा रहा है।

दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नौकरशाही के रिश्ते हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री का पहला भरोसा अपने अफसरों पर होता है, न कि अपने मंत्रियों और विधायकों पर। यही बात गाहे—बगाहे नेताओं को बुरी लगती है। मौके—बे—मौके इसको लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर करते रहते हैं नेता। लेकिन यह बात और है कि मुख्यमंत्री इन बातों को न तो कान देते हैं और न ही उन पर कोई गंभीरता दिखाते हैं। चाहे मंदसौर वाला किसानों का आंदोलन हो या फिर सरकार की नई नीतियों की बात। हर जगह अफसर ही नीति और रणनीति तय करते हैं।

इन बातों के साथ थोड़ा पीछे चलते हैं, पिछले साल संघ और भाजपा के समन्वय की बैठक हुई। पूरी बैठक में मसला छाया रहा कि नौकरशाह प्रदेश को चला रहे हैं। कार्यकर्ताओं की सुनी नहीं जा रही है, पब्लिक के काम नहीं हो रहे हैं। यह कहने वाले कोई और नहीं, बल्कि भाजपा और सरकार के विधायक व संघ के नेता ही थे। बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, विधानसभा में उठने वाले सत्ता पक्ष के विधायकों के सवालों पर जरा गौर फरमा लें तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाएगी। यहां भी पूरी तरह से निशाने पर अफसर ही होते हैं। संघ की दूसरी समन्वय बैठक इस साल हुई, उसमें भी निशाना अफसरशाही ही था और उसके बाद अब अमित शाह का बयान कि प्रदेश में अफसरशाही हावी है।

सवाल यही खड़ा हुआ है कि आखिर निशाने पर अफसर क्यों हैं? या फिर अफसरों के बहाने प्रदेश सरकार पर निशाना साधने की कोशिश हो रही है? इन दोनों ही सवालों के इर्द—गिर्द पूरी भाजपा और उसकी राजनीति फिलहाल प्रदेश में घूम रही है। सवाल यही बना हुआ है कि पब्लिक के सामने पार्टी अध्यक्ष अपनी सरकार को सौ में से सौ नंबर दे रहे हैं। लेकिन अंदरखाने निशाने पर सरकार को ले रहे हैं। बहाना नौकरशाही है। पार्टी के विधायक और पदाधिकारी भी इसी बहाने से सरकार पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।

राजनीति से जुड़े जानकारों का मानना है कि यह पार्टी के अंदर खड़े हो रहे असंतोष का एक बड़ा कारण है। कहीं न कहीं उपेक्षा और अनदेखा किए जाने से कार्यकर्ता और नेताओं के भीतर का गुस्सा अफसरशाही के बहाने सरकार पर फूट रहा है, जो आने वाले दिनों में भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है। यही वजह है कि अमित शाह ने पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं की बात सुनने की साफ हिदायत दे दी। अगर बैठक में मौजूद लोगों की बातों पर भरोसा करें तो अमित शाह ने साफ कहा कि अगर कार्यकर्ता अपने परिवार के सदस्य के तबादले की अर्जी लेकर आता है तो उसे सबसे पहले सुना जाए और उसका निदान भी किया जाए।