कपड़ा कारोबार की आड़ में जासूसों का नेटवर्क खड़ा कर रही है ISI

इंदौर.पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में कपड़ा कारोबार की आड़ में अपने जासूसों का नेटवर्क खड़ा कर रही है। जासूसों को सीमा पार से भुगतान करने के लिए उन्हें कागजों पर कपड़ा कारोबारी बताकर लेनदेन के सबूत जांच एजेंसियों को मिले हैं। फरवरी में मप्र एटीएस द्वारा आईएसआई की मदद से प्रदेशभर में चलाए जा रहे पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज और जासूसी नेटवर्क का भंडाफोड़ किया था। इस मामले में एटीएस द्वारा हाल ही में भोपाल की कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट से यह खुलासा हुआ है। सूत्रों की मानें तो इंदौर, धार, बड़वानी, बुरहानपुर, भोपाल, सतना, जबलपुर के कुछ कारोबारी और ठेकेदार सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर हैं।

कारोबार में मदद के बदले सूचनाएं लीक
पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज मामले की जांच में यह भी पता चला कि प्रारंभिक रूप से चुने गए एजेंटों को कारोबार जमाने में मदद कर आईएसआई अपने स्लीपर सेल के सहारे नया ग्रास रूट नेटवर्क तैयार कर रही है। इनमें ठेकेदार, ऑटोमोबाइल और रेहड़ी वाले भी शामिल हैं। रुपए के बदले में यह लोग आईएसआई को खुफिया जानकारी मुहैया करवा रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को पाकिस्तान से भारत के छोटे शहरों में भी बड़ी रकम के लेन-देन के सुराग मिले।

दिल्ली का जब्बार निकला मुख्य एजेंट
आईएसआई ने दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके का हवाला कारोबारी जब्बार को अपना मुख्य एजेंट बना रखा था। प्रदेश से पकड़े गए अन्य एजेंटों द्वारा जब्बार को कपड़ा भेजना दिखाया जाता था। मप्र एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए गए जितेंद्र ठाकुर, कुश पंडित (ग्वालियर), मनोज भारती, संदीप गुप्ता (जबलपुर) और बलराम संयोग सिंह (सतना) को कपड़ों का मुख्य डीलर बताया गया,
जबकि यह पाकिस्तान से आए कॉल को लैंडलाइन में बदलने के कॉल सेंटर चलाते थे। इन सभी के कॉल सेंटरों से जितनी रकम आईएसआई के बही खातों में दर्ज होती थी, उतनी रकम का कपड़ा जब्बार को इनसे दिल्ली सप्लाय करना बताया जाता था। जब्बार पाकिस्तान कपड़ा भेजता था, लेकिन उसे वहां से कपड़े की कीमत के बदले मोटी रकम दी जाती थी, जो दरअसल देशभर के एजेंटों को जानकारी के बदले दी जाती थी।

5 माह पहले किया था पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज का भंडाफोड़
मप्र एटीएस ने फरवरी में आईएसआई की मदद से चलाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय काॅल रैकेट का भंडाफोड़ कर प्रदेश के 11 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनके पास से 40 सिम बॉक्स और 3000 से ज्यादा सिम कार्ड भी मिले थे । गिरफ्तार लोगों में भाजपा का कथित नेता ध्रुव सक्सेना भी शामिल था। यह सभी चाइनीज सिम बॉक्स की मदद से पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज चला रहे थे। इसकी मदद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से आई कॉल को लोकल लैंडलाइन कॉल में बदल दिया जाता था। जम्मू-कश्मीर और महत्वपूर्ण सैनिक ठिकानों पर तैनात सैनिक अधिकारियों तक लैंड लाइन से कॉल पहुंचते थे और उनसे महत्वपूर्ण सैन्य जानकारियां एकत्रित की जाती थीं। इसी की मदद से लोगों के साथ ठगी भी की जा रही थी।

जासूसी के लिए कपड़ा कारोबार ही क्यों?
कपड़े का लागत और विक्रय मूल्य तय करने का तयशुदा फाॅर्मूला नहीं है। इसकी कोई एमआरपी भी नहीं होती। मनमुताबिक कीमत तय की जा सकती है। 10 लाख रुपए के कपड़े के बदले एक करोड़ का भुगतान भी किया जा सकता है। इस तरह की सुविधा हर व्यवसाय में नहीं है। इसलिए आईएसआई ने अपने नापाक मंसूबों के लिए कपड़ा कारोबार की आड़ ली। जासूसी के बदले इन कथित कपड़ा कारोबारियों को भुगतान करने के लिए देशभर में 500 से ज्यादा संदिग्ध बैंक खाते खोलने की बात भी सामने आई है।

ऐसे तय होती है कपड़ों की कीमत
1. काॅस्ट प्राइस : यह वह कीमत है, जिस कीमत पर कच्चे माल
से गारमेंट तैयार किए जाते हैं।
2. सेलिंग प्राइस : खुले बाजार में जिस कीमत पर कपड़ा ग्राहकों को बेचा जाता है।
3. इनवॉइस प्राइस : यह कीमत कारोबारी तय करते हैं। इसी इनवॉइस प्राइस में हेरफेर कर जासूसी की रकम एडजस्ट की जाती है।

जिनका पुलिस रिकॉर्ड नहीं, उनकी स्लीपर सेल बना रही आईएसआई
आईएसआई वर्तमान में एक्टिव स्लीपर सेल के जरिए ऐसे लोगों का चयन अपने नए ग्रास रूट नेटवर्क के लिए कर रही है, जिनका पुलिस रिकॉर्ड अच्छा है। चुने गए संदिग्धों का ब्रेन वाॅश कर उन्हें काम-धंधा जमाने में मदद की जाती है। कपड़ा कारोबारियों के अलावा ठेकेदार, फल व्यवसायी, ऑटोमोबाइल्स, गल्ला कारोबार में लगे लोग और पढ़े-लिखे युवा भी आईएसआई के निशाने पर हैं।

पाकिस्तानी ब्रिगेडियर से टेलीफोन पर 400 बार बात की थी जासूसों ने
कपड़ा कारोबार की आड़ में चल रहे पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज के मॉड्यूल का सरगना पाकिस्तानी सेना का ब्रिगेडियर अकरम था। करीब 4000 ऐसे कॉल रिकॉर्ड मिले हैं, जिनमें अकरम की दिल्ली के जब्बार और प्रदेश से पकड़े गए राजन, बलराम, संयोग सिंह आदि से बात हुई थी। यही ब्रिगेडियर इन जासूसों को भुगतान के लिए जब्बार के पास पैसे भेजता था। जब्बार पाकिस्तान भेजे गए कपड़े की मूल कीमत और कमीशन काटकर बाकी पैसा जासूसों के खाते में डाल देता था।