ऐसे ही ‘किंग ऑफ रोमांस’ नहीं कहलाते थे यश चोपड़ा, फिल्मों में नहीं होता था कोई विलेन

नई दिल्ली: बॉलीवुड इंडस्ट्री में यश चोपड़ा का अलग ही रुतबा, अलग ही पहचान थी. उन्होंने इस इंडस्ट्री को बहुत सी हिट फिल्में दी हैं. इतना ही नहीं वह इस इंडस्ट्री के किंग ऑफ रोमांस के नाम से भी जाने जाते हैं. उन्होंने बड़े पर्दे पर रोमांस को हमेशा ही बेहद प्यारे तरीके से दिखाया है. शायद जैसा लोग असल जिंदगी में सिर्फ ख्वाबो में सोचते हैं उसी तरह से उन्होंने उन ख्वाबो को बड़े पर्दे पर उतारा है. बता दें, यश चोपड़ा का जन्म 27 सिंतबर 1932 को लाहौर में हुआ था. वह अपने आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे.

घर वाले चाहते थे कि वह इंजीनियर बने
यश चोपड़ा हमेशा से ही डायरेक्टर बनना चाहते थे लेकिन अपने आखिरी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उनका परिवार चाहता था कि वह इंजीनियर बने, लेकिन उन्होंने अपने दिल की अपने सपने की सुनी. उन्होंने अपने बड़े भाई बी.आर चोपड़ा को कहा कि उनको डायरेक्टर बनना है और इस तरह उन्होंने डायरेक्शन की दिशा में अपना पहला कदम लिया.

‘धूल और फूल’ थी पहली फिल्म
उन्होंने सबसे पहले फिल्म ‘धूल और फूल’ को डायरेक्ट किया, लेकिन इससे पहले इस फिल्म को ओम बेदी डायरेक्ट करने वाले थे और वह असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर उनके साथ काम करने वाले थे. हालांकि, उसी बीच ओम बेदी को कोई और फिल्म ऑफर हुई और वह चले गए. इससे उनका रास्ता साफ हो गया और उन्होंने इस फिल्म को डायरेक्ट किया. उन्होंने इंटरव्यू में बताया, जब कठिन दिन आते हैं तब आपको पता चलता है चीजें कितनी मुश्किल होती हैं. एक्टर से फिल्म की बात करना, उनको राजी करना फीस की बात करना सब काफी मुश्किल था, लेकिन हुआ. फिल्म हिट भी हुई.

मानवीय रिश्तों पर आधारित होती थी फिल्म
इसके बाद उन्होंने बहुत सी फिल्में डायरेक्ट की. यूं तो उन्होंने हर तरह की फिल्मे बनाई लेकिन वह अपनी बनाई गई रोमांटिक फिल्मों को लेकर जाने जाते हैं. इनमें ‘कभी-कभी’, ‘डर’, ‘चांदनी’, ‘दिल तो पागल है’, ‘वीर-जारा’ जैसी फिल्मों से बॉलीवुड को उन्होंने रोमांस की नई परिभाषा दी. इसके अलावा उनकी फिल्मों की एक खास बात यह भी है कि उनमें विलेन नहीं हुआ करते थे. इसका जवाब भी उन्होंने अपने आखिरी इंटरव्यू में दिया था. उन्होंने कहा था, ‘मेरी फिल्में रोमांटिक नहीं होती, बल्कि वो मानवीय रिश्तों पर बनी होती हैं. इंसान….,रिश्ते एक उलझी हुई चीज है. मेरी फिल्मों में विलेन वैंपायर नहीं होता, क्योंकि मेरा मानना है एक इंसान खुद ही अपने आप में हीरो है, और खुद ही विलेन. मैंने खुद सोच लिया मैं डायरेक्टर बनूंगा. यह मेरा फैसला है. यह सही है या गलत यह मैंने तय किया. सही हुआ तो हीरो. गलत हुआ तो विलेन. मेरा मानना है, प्यार को परिभाषित करना मुश्किल है.’

‘जब तक है जान’ थी आखिरी फिल्म
उनकी आखिरी फिल्म ‘जब तक है जान’ थी. इस फिल्म में शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा और कैटरीना कैफ एक साथ नजर आए थे. उन्होंने अपने आखिरी इंटरव्यू में कहा था कि अब वह अब आराम करेंगे, अपने परिवार के साथ वक्त बिताएंगे. स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से इस फिल्म के कुछ हिस्सों को शूट भी नहीं किया गया था, लेकिन किसे पता था कि यह उनकी आखिरी फिल्म होगी. 80 की उम्र में वह सबके दिलों पर अपनी फिल्मों से प्यार, महोब्बत, इश्क की छाप छोड़कर हमेशा के लिए चले गए.