जैविक खेती सीखने इंदौर आए थे महात्मा गांधी, अंग्रेजों ने लंदन में लगाया था स्टॉल

इंदौर. विश्व में तेजी से धाक जमा रही जैविक खेती के मंत्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इंदौर आकर सीखे थे। महात्मा गांधी १९३५ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में बतौर अध्यक्ष इंदौर आए थे। उन्होंने २३ अप्रैल को इंस्टिट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री (अब कृषि कॉलेज) जाकर इंदौर मैथड से कम्पोस्ट (खाद) मेकिंग सीखी। इसका जिक्र उन्होंने बाद में ग्राम स्वराज किताब व अपने कई लेखों में किया।

कहानी शुरू होती है १९३२ से। लंदन में हुए तीसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गए गांधीजी से एक कृषि मेले का उद्घाटन कराया गया। मेला भ्रमण के दौरान उनकी नजर एक स्टॉल पर पड़ी, जिसमें नक्शा भारत का था, लेकिन तख्ती इंदौर के नाम की लिखी हुई थी। गांधीजी ने कहा, भारत के नक्शे पर इंदौर क्यों लिखा है, यह तो भारत का महज एक शहर है। इस पर अंग्रेजों ने उन्हें बताया, जैविक खाद बनाने की इंदौर मैथड की पूरी दुनिया में पहचान है, इसलिए हमारे लिए इंदौर से ही भारत की पहचान है। तभी गांधी ने तय किया, वे इसे समझने इंदौर जाएंगे।

आज भी लगी हैं तस्वीरें
कृषि विशेषज्ञ अरुण डिके कहते हैं, उस घटना के बाद २३ अप्रैल १९३५ में गांधीजी इंदौर आए। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता के बाद इंस्टिट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री पहुंचे। उन्होंने कहा, जैविक खाद बनाने का तरीका कितना सरल और खेतों की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने वाला है। कॉलेज में आज भी गांधीजी की वे तस्वीरें लगी हुई हैं।

जॉन हार्वर्ड को इंदौर मैथड बनाने का श्रेय
डिके कहते हैं, इंदौर मैथड बनाने का श्रेय कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट व बॉटनी के प्रोफेसर अल्बर्ट हार्वर्ड को है, जिन्हें भारतीय खेती को समझने के लिए यहां भेजा गया था। वह २१ साल तक देशभर में घूमे। खेती के भारतीय तरीके देखकर अभिभूत हो गए। १९२३ में वह इंदौर आए, यहां पर राजा शिवाजी राव होलकर ने उन्हें जमीन दी, जिस पर उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री की स्थापना की और यहीं जैविक खाद बनाने का इंदौर मैथड विकसित किया। उन्होंने अपनी पत्नी गैब्रियल हार्वर्ड के साथ मिलकर ‘एन एग्रीकल्चरल टेस्टामेंट’ किताब लिखी, जिसमें लिखा, दुनिया के लिए भारतीय किसानी का तरीका किसी जायदाद से कम नहीं है।