सुरों की मलिका बेगम अख्तर का हमेशा मुरीद रहेगा जमाना

जब लखनऊ में संगीत घराने की बात हो और सुरों की मलिका बेगम अख्तर का जिक्र न हो तो बात अधूरी रह जाती है। दादरा, ठुमरी व गजल में अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करने वाली बेगम अख्तर ने अपनी गायकी से एक मिसाल कायम की। उनका तल्लफुस बहुत साफ था और वो खनकती हुई आवाज की मालकिन थीं। मशहूर गजल ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया… के अलावा बेगम अख्तर ने संगीत प्रेमियों को गजलों की कीमती विरासत सौंपी है। बेगम ने कई जगह रहकर अपनी आवाज का जादू बिखेरा लेकिन उनका दिल हमेशा लखनऊ के लिए धड़कता रहता था।

इतिहासकार योगेश प्रवीण बताते हैं कि बेगम की ठुमरी जो एक बार सुन लेता वह उनका मुरीद हो जाता। बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को फैजाबाद में हुआ था। 1938 में वह आइडियल फिल्म कंपनी के काम के लिए लखनऊ आई थीं। हालांकि 1941 में मुंबई चली गई लेकिन ये शहर उन्हें पसंद नहीं आया और वह लखनऊ आ गईं। भातखंडे में वह एक लंबे अरसे तक विजीटर प्रफेसर रहीं। बेगम ने जिस खास अंदाज के साथ गजलें गाईं उसी अंदाज में उन्होंने ठुमरी व दादरा भी पेश किए। उनके निधन के बाद पार्थिव शरीर उनकी वसीयत के मुताबिक ठाकुरगंज के पास पसंदबाग में अपनी मां के पास ही दफन किया गया।

जो एक बार सुन ले दीवाना हो जाता था
शास्त्रीय गायिका सुनीता झींगरन बताती हैं कि बेगम अख्तर का नाम आते ही मन में गजल, ठुमरी व दादरा का ख्याल आने लगता है। मेरा सौभाग्य है कि मैंने उनसे गायकी सीखी। वह गजल, दादरा व ठुमरी की बेताज मल्लिका थी। उनकी आवाज का जादू ऐसा था कि कोई एक बार सुन ले तो, उनका दीवाना हो जाए। उनके लिए मलिका-ए-गजल व मलिका-ए-ठुमरी का लकब दिया जाता है। लोक गायिका कमला श्रीवास्तव ने बताया कि कि बेगम अख्तर की आवाज बहुत ही सुरीली थी। उनके साथ काफी मुलाकातें हुई हैं। वह जब भातखंडे में पढ़ाने आती थी तो अपनी क्लास के बाद मैं उनकी क्लास के बाहर खिड़की से खड़ी होकर उन्हें देखती रहती थी। हालांकि बाद में आकाशवाणी में उनसे कई मुलाकतें हुईं।