NPA की स्थिति सुधारने को बना सिस्टम 4 वर्षों में भी नहीं आया काम: RBI

एनपीए की गिरफ्त से सरकारी बैंकों को छुड़ाने की सारी कोशिशें तो हो रही है लेकिन एनपीए (नान परफॉरमिंग एसेट यानी फंसे कर्ज) की वसूली के मौजूदा तंत्र पूरी तरह से बेकार हो गये हैं। इसके मौजूदा तीन तंत्रों लोक अदालत, ऋण वसूली प्राधिकरण (डीआरटी) और प्रतिभूति कानून (एसएआरएफएईएसआइ) का प्रदर्शन वर्ष 2013-14 के बाद से लगातार बद से बदतर होता गया है।

चार वर्ष पहले इन तीनों तंत्रों से फंसे कर्जे की 22 फीसद तक राशि वसूल हो रही थी जो वित्त वर्ष 2016-17 में घटकर सिर्फ 10 फीसद रह गई। यह तब हुआ है जब सरकार ने देश भर में डीआरटी की संख्या भी बढ़ाई है और प्रतिभूति कानून में संशोधन कर उसे पहले से ज्यादा प्रभावशाली बनाने की कोशिश की है।

कर्ज वसूली का यह डाटा खुद आरबीआई का है। बैंकों के प्रदर्शन पर जारी अपनी रिपोर्ट में जो बातें कही गई है, उससे साफ है कि सरकार की तरफ से कर्ज वसूली के तंत्र को लेकर जो भी कदम उठाये गये, वे बेकार गये हैं। सरकारी बैंकों के अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि कर्ज वसूली तंत्र के बुरी तरह से असफल होने की वजह से ही एनपीए 30 सितंबर 2017 तक बढ़कर 8.50 लाख करोड़ रुपये के हो गया है। गुरुवार को आरबीआइ की तरफ से जारी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च, 2018 और सितंबर, 2018 तक एनपीए में और बढ़ोतरी होगी। इसमें कहा गया है कि मार्च, 2018 तक एनपीए 11 फीसद तक पहुंच सकता है। इस बढ़ोतरी के पीछे एक वजह यह भी है कि कर्ज नहीं चुका पाने वाली कंपनियों को अब डीआरटी, लोक अदालत या प्रतिभूति कानून का कोई डर नहीं रह गया है।

बहरहाल, अब जरा एक नजर फंसे कर्ज की राशि वसूली की इन व्यवस्थाओं के प्रदर्शन पर डालते हैं। इन तीनों तंत्रों के तहत वर्ष 2012-13 में 1033 करोड़ रुपये के फंसे कर्जे के मामले का निपटान किया गया था लेकिन बैंक इसका 22 फीसद यानी 233 करोड़ रुपये ही वसूलने में सफल हुए। इसके दो वर्ष बाद यानी 2014-15 में 2442 करोड़ रुपये के मामले इन व्यवस्थाओं में भेजे गये लेकिन वसूली 302 करोड़ रुपये (12 फीसद) रही। जबकि पिछले पांच वर्षो के दौरान सिर्फ सरकारी बैंकों का एनपीए 1.17 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर तकरीबन 6.50 लाख करोड़ रुपये हो गया।

रिजर्व बैंक की ओर से जारी किए गए इस डाटा से यह भी सामने आता है कि कर्ज वसूलने में प्रतिभूति कानून तो पूरी तरह से असफल साबित हो गया है। पांच वर्ष पहले इस कानून के जरिये बैंक तकरीबन 27 फीसद तक कर्ज वसूलने में सफल होते थे लेकिन अब इस कानून के तहत जितनी कर्ज की राशि वसूलने के लिए अदालतों में ले जाई जाती है उसका सात फीसद राशि ही वसूल पाती है। यह हालात तब है जब विगत पांच वर्षो में इस कानून में तीन बार संशोधन हो चुका है।