गोपाल मंदिर में चूना, गुड और मैथी दाने से रूकेगा पानी का रिसाव

शहर के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल ऐतिहासिक गोपाल मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य को अब जाकर गति मिली है। मंदिर के मुख्य भाग में प्राचीन तरीके से वाटर प्रूफिंग की जा रही है। इसमें केमिकल के बजाय परंपरागत सामग्री और तौर-तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
जीर्णोद्धार कर रही राजस्थान की राजपुताना कंस्ट्रशन कंपनी के साइट इंजीनियर भूपेंद्र स्वामी का कहना है कि पुराने जमाने में लोग गारे से मकान बनाते थे। पक्के मकानों के लिए सीमेंट की जगह चूने का अधिक उपयोग होता था। इस पद्धति से बनाए गए मकानों की उम्र अधिक होती है। छत से पानी न टपके, इसके लिए चूना, गूगल, गुड़, मैथी दाना और जूट के रेशे का सॉल्यूशन तैयार किया जाता है। इसे छत पर चढ़ाया जाता है। यह छिद्रों में इतनी अच्छी तरह सेट हो जाता है कि बारिश का पानी छत के अंदर प्रवेश नहीं कर पाता है।
मंदिर के अन्य हिस्सों में लगी पुरानी लकड़ियों का उपयोग उसी जगह दोबारा किया जा रहा है। पुरानी लकड़ी की उम्र बढ़ाने व दीमक से बचाव के लिए ट्रीटमेंट किया जा रहा है। मंदिर परिसर में पूर्वी हिस्से के बेसमेंट की छत में लगी लकड़ी के बीम को उसी तरह उपयोग किया गया है। छत का निर्माण लकड़ी के राफ्टर लगाकर और उस पर पन्नी व ईंटों की परत बिछाकर किया जा रहा है। जीर्णोद्धार के लिए राजस्थान से एक दर्जन मिस्त्री आए हुए हैं।