सिंधिया, कमलनाथ और महाकौशल के चक्रव्यूह के बीच अरुण यादव का क्या होगा?

भोपाल। मध्यप्रदेश भाजपा ने जब से प्रदेश अध्यक्ष के पद पर महाकौशल के चेहरे को बिठाया है, सियासी गलियारों में उसी वक्त से कांग्रेस का अध्यक्ष बदलने की सुगबुगाहट जारी है। संभावना ये भी जताई जा रही है कि कांग्रेस भी अपना अगला अध्यक्ष महाकौशल से यानी कमलनाथ को बनाएगी।
कमलनाथ के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया को चाहने वाले उनके लिए भी प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी चाहते हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब प्रदेश की राजनीति में सिंधिया और कमलनाथ सक्रिय होंगे या अध्यक्ष बनाए जाएंगे तो अरुण यादव का क्या होगा। प्रदेश कांग्रेस के लिए अब तक की जा रही उनकी मेहनत का उन्हें क्या परिणाम मिलेगा। क्या बड़े कद के नेताओं के बीच अरुण यादव का कद घटा दिया जाएगा?
जानकार मानते हैं कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य प्रदेश के बड़े नेता हैं। ये अगर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होंगे तो उसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। लेकिन, इसका ये मतलब नहीं है कि अरुण यादव को दरकिनार कर दिया जाए। अरुण यादव ने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के साथ मिलकर पिछले कुछ सालों में प्रदेश में खासी मेहनत की है। इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिसकी वजह से उन्हें हटाया जाए।
सक्रिय होंगे कमलनाथ-सिंधिया, बने रहेंगे अरुण यादव
माना जा रहा है कि कांग्रेस कमलनाथ और सिंधिया की भूमिका प्रदेश में बढ़ाएगी जरूर, लेकिन इसका असर अरुण यादव के कद पर नहीं होने दिया जाएगा। पार्टी सूत्रों की मानें तो अरुण यादव अभी की तरह ही कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहेंगे जबकि कमलनाथ को कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका सौंपकर महाकौशल क्षेत्र को साधने के साथ ही कमलनाथ के रणनीतिक प्रबंधन का फायदा भी कांग्रेस उठाएगी। इसके साथ ही दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा को प्रदेश में कांग्रेस के रणनीतिक एवं समन्वय अभियान की कमान देने की चर्चा भी सुनी जा रही है।
सभी दिग्गजों को एक मंच पर लाये अरुण यादव
खास बात ये है कि बड़े नेताओं के सक्रिय होने के बाद अरुण यादव को दरकिनार करने की चर्चा जरूर जोर पकड़ रही है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि अरुण यादव के कार्यकाल में ही ऐसे मौके आये जब मध्यप्रदेश कांग्रेस के सभी दिग्गज कमलनाथ, दिग्विजय, सिंधिया और सुरेश पचौरी जैसे नेता एक मंच पर दिखाई दिये। इतने सारे दिग्गजों से सामंजस्य बिठाकर चलना किसी भी अध्यक्ष के लिए मुश्किल होता है, लेकिन अरुण यादव ने ये काम बखूबी संभाला है।
यही वजह है कि बीजेपी की तरह सामाजिक, क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को साधने की जुगत में लगी कांग्रेस में अरुण यादव के कद को खतरा नहीं है। इसके साथ ही जिस तरह से बीजेपी ने राकेश सिंह को पिछड़ा वर्ग के नेता के तौर पर प्रचारित कर पिछड़ा वर्ग को जोड़ने की कोशिश की है, ऐसे हालात में कोई वजह नहीं बनती की कांग्रेस अपने पिछड़े वर्ग के अध्यक्ष को किनारे कर इतने बड़े वोट बैंक को नाराज करना चाहेगी। यादव समुदाय से होना भी अरुण यादव के लिए फायदेमंद है क्योंकि मध्यप्रदेश में भले ही यूपी-बिहार जितना यादव वोट बैंक न हो, लेकिन ये वोट बैंक इतना बड़ा जरूर है कि चुनाव पर प्रभाव डालेगा। ऐसे में चुनाव से छह महीने पहले कोई भी पार्टी ये जोखिम नहीं उठाएगी।
अरुण यादव में कायम है हाईकमान का विश्वास
हालांकि अरुण यादव ने जब से अध्यक्ष की गद्दी संभाली है तब से लगातार उन्हें हटाये जाने की अटकलों को हवा मिलती रही है। कभी सिंधिया तो कभी कमलनाथ के अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाओं के बीच कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेश प्रभारी मोहन राकेश को हटाकर दीपक बावरिया को तो प्रभारी बना दिया, लेकिन अरुण यादव कयासों और अटकलबाजी के दौर में पार्टी हाईकमान के प्रति अपनी विश्वसनीयता कायम रखने में कामयाब रहे।