MP POlitics: भाजपा-कांग्रेस दोनों से अपने ही हैं नाराज,जानिये क्यों?

भोपाल। मध्यप्रदेश में 2018 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर भले ही दोनों पार्टियां कांग्रेस व भाजपा एक दूसरे पर लगातार हमले कर रहीं हों। लेकिन इन सबके बीच इनके अपने ही इनसे नाराज चल रहे हैं। जिसके चलते जहां एक ओर समस्याओं को निपटाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं, वहीं गलतियों के सुधार के तरीके भी इन्हें बताए जा रहे हैं।
जानकारों के अनुसार कांग्रेस में जहां संगठन चुनाव प्रक्रिया पर ही सवाल उठने के साथ ही विवाद पैदा हो गया है, वहीं भाजपा से आरएसएस किसानों की समस्याओं को लेकर नाराज है, इतना ही नहीं शिक्षा प्रणाली जैसे मुद्दों को लेकर भी आरएसएस भाजपा से संतुष्ट नहीं है।
सरकार को संघ की खरी-खरी…
प्रदेश में किसानों की दुर्दशा और समर्थन मूल्य के लिए खुलेआम सोसाइटियों में हो रही रिश्वतखोरी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सरकार को खरी-खरी सुनाई है। राजीवगांधी पौद्योगिकी विश्वविद्यालय के गेस्ट में आयोजित बैठक में मप्र के प्रमुख अरुण जैन ने सत्ता और संगठन के लोगों के साथ सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा की।
सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक दो सत्रों में आयोजित बैठक में मंत्री माया सिंह, जयंत मलैया, राजेंद्र शुक्ल, गौरीशंकर बिसेन, विश्वास सारंग, संजय पाठक, संगठन महामंत्री सुहास भगत एवं महामंत्री वीडी शर्मा मौजूद रहे। मध्य भारत, महाकौशल और मालवा से आए संघ पदाधिकारियों ने मंदसौर गोलीकांड के बाद भी किसानों की समस्याओं के जस के तस होने की जानकारी बैठक में रखी। इस पर कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन से सवाल जवाब किया गया। बिसेन के जवाबों से संघ पदाधिकारी संतुष्ठ नहीं हुए और उन्हें काम में सुधार की नसीहत तक दी गई।
इन मुद्दों पर खुली चर्चा :
दूसरे दिन की बैठक की शुरुआत संघ के अनुशांगिक संगठनों के फीडबैक और जिलों से सामने आ रही विभागीय समस्याओं की सूचना के साथ हुई। पांच लाख से कम आबादी वाले शहरों में विकास कार्यों की बाधा, सिंचाई के लिए बिजली की समस्या, समर्थन मूल्य के लिए सोसाइटियों में रिश्वत की मांग, महंगाई और लघु एवं सुक्ष्म उद्योगों की संख्या में इजाफा नहीं होने जैसी बातें शामिल रहीं। मंत्रियों से कहा गया कि वे नियमित रूप से जिलों में मौजूद आरएसएस के अनुशांगिक संगठन के लोगों से मिलें, ताकि मैदानी फीडबैक की सत्यता का पता चलता रहे।
महंगाई बढ़ी, उद्योग घटे :
प्रदेश में बढ़ती महंगाई, लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों की संख्या में इजाफा नहीं होने पर भी संघ ने चिंता जताई। पेट्रोल-डीजल के मामले में देश में मप्र दूसरा सबसे ज्यादा टैक्स वसूलने वाला राज्य है, जबकि इंवेस्टर्स मीट में करोड़ों रुपए फूंकने के बावजूद लक्ष्य पूरे नहीं होने से संघ पदाधिकारी नाखुश दिखे।
इन विषयों पर जयंत मलैया, राजेंद्र शुक्ला और संजय पाठक ने विभाग का लेखा जोखा आंकड़ों में रखा तो संघ ने इसकी तुलना मैदानी उपलब्धि से करने की सलाह दी।
इधर,कांग्रेस में गहराया विवाद…
मप्र में कांग्रेस संगठन चुनाव प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगे हैं। घोषित कार्यक्रम के तहत उम्मीदवारों का चयन मतदान के जरिए होना था, लेकिन रायशुमारी के प्रयास शुरू हो गए हैं। इसको लेकर विवाद शुरू हो गया है।
चुनाव के शुरुआत में बीआरओ (ब्लॉक चुनाव अधिकारियों) की नियुक्ति से विवाद शुरू हो गया था। कुछ बीआरओ एेसे नियुक्त कर दिए गए, जो भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। प्रदेश के बड़े नेताओं की भी नाराजगी रही कि चुनाव अधिकारी नियुक्त किए जाने के पहले उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया। एेसे नेताओं को ब्लॉक चुनाव की जिम्मेदारी दे दी गई, जो प्रदेश संगठन में बड़े ओहदे पर रहे हैं।
आपत्तियों और विरोध के चलते बीआरओ की सूची संशोधित हुई। अब नई सूची में भी कुछ नामों पर आपत्ति है। इसके बाद भी चुनाव अधिकारियों ने चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी तो विवाद और बढ़ गया। अधिकांश जगहों पर मतदान की जगह रायशुमारी की जा रही है, जिस पर नेताओं को आपत्ति है। बैतूल जिले के आमला में रविवार को संगठन चुनाव को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि कार्यकर्ताओं में मारपीट तक हो गई। विवाद का प्रमुख कारण गुटबाजी और चुनाव प्रक्रिया में पारदिर्शता न होना रहा है।
एेसा भी हो रहा है :
चुनाव अधिकारियों को चुनाव सामग्री के साथ लाल रंग के फार्म भी दिए गए थे। इन पर चुनाव में विजयी उम्मीदवारों के नाम अंकित कर जिला चुनाव अधिकारियों को दिए जाने हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि चुनाव अधिकारियों को लाल रंग के नहीं, बल्कि सफेद फार्म दिए गए हैं। बाद में लाल रंग के फार्म भरकर कांगे्रस के केन्द्रीय चुनाव प्राधिकरण को भेजे जाएंगे। वहीं बीआरओ, डीआरओ की 27-28 को होने वाली बैठक अब 3 अक्टूबर को होगी।