दबाव में ही सही लेकिन चीन ने उत्तर कोरिया के खिलाफ लिया ये बड़ा फैसला

उत्तर कोरिया से उपजे तनाव के बीच अब उसके सबसे बड़े सहयोगी चीन ने भी उससे मुंह फेर लिया है। चीन अभी तक उसके साथ खड़ा दिखाई दे रहा था, लेकिन अब अंतरराष्‍ट्रीय दबावों के तहत चीन ने साफ कर दिया है कि वह उस पर क्षेत्र में शांति कायम करने के लिए दबाव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा। इसी नीति पर अमल करते हुए चीन ने अपने यहां से उत्तर कोरिया की सभी कंपनियों को बंद करने का आदेश दिया है। हाल ही में उत्तर को‍रिया पर लगे प्रतिबंधों के बाद यह दूसरा मौका है जब चीन ने उसके खिलाफ बड़ा फैसला लिया है। इससे पहले चीन ने उत्तर कोरिया को होने वाली गैस और पेट्रोल की सप्‍लाई को खत्‍म कर दिया था।

चार माह में बिजनेस बंद कर छोड़ना होगा देश

ताजा फैसले में चीन ने अपने यहां पर लगी कंपनियों को चाहे वह ज्‍वाइंट वेंचर के तहत लगी हों या फिर स्‍वायत्त तरह से लगी हों, सभी को अपना बिजनेस बंद करने के लिए चार महीने का समय दिया है। गौरतलब है कि यूएन की सुरक्षा परिषद ने गत 12 सितंबर को उत्तर कोरिया पर अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंध लगाए थे। वर्ष 2006 के बाद यूएनएससी की तरफ से उत्तर कोरिया पर लगाया गया यह नौवां प्रतिबंध था। चीन की तरफ से इस फैसले की जानकारी वाणिज्‍य मत्रांलय की ओर से दी गई है। 12 सितंबर को यूएनएससी के प्रतिबंधों में कपड़े और तेल सप्‍लाई पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया था।

माना जा रहा है कि यह फैसला चीन ने अंतरराष्‍ट्रीय दबाव के चलते ही लिया है। यहां पर यह बात ध्‍यान में रखनी होगी कि पूरी दुनिया इस बात को मानती है कि यदि चीन प्रतिबंधों को लागू कर उत्तर कोरिया पर सही तरीके से दबाव बनाने में सफल हुआ तो वह वार्ता के लिए राजी हो सकता है। इस बात का जिक्र अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने भी अपने बयानों में कई बार किया है। वह कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि चीन को उत्तर कोरिया पर शांति बनाए रखने के लिए दबाव बनाना होगा। इसके अलावा भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने भी इस बात को माना है कि चीन चाहेगा तो उत्तर कोरिया वार्ता की मेज पर आएगा।
सही दिशा में लिया गया कदम

अमेरिका में पूर्व भारतीय राजदूत मीरा शंकर मानती हैं कि उत्तर कोरिया पर दबाव बनाने के लिए प्रतिबंध सही दिशा में उठाया गया कदम है। उनका यह भी कहना है कि जंग किसी भी चीज का कोई समाधान नहीं है और यदि ऐसा होता है तो यह न सिर्फ उत्तर कोरिया बल्कि जापान समेत दक्षिण कोरिया को भी बड़ी परेशानी में डाल सकता है। इतना ही नहीं इन्‍हीं दो देशों को उत्तर कोरिया से सबसे बड़ा खतरा भी है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि सरकार के इस ताजा फैसले से देश की अर्थव्यवस्था पर कोई खास खबर नहीं पड़ेगा।

युद्ध से होगा चीन को नुकसान

विदेश मामलों की जानकार अलका आचार्य का मत है कि चीन के लिए यह राजनीतिक चुनौती भी है कि वह इसको सफलतापूर्वक अंजाम दे। इसके लिए बेहद जरूरी होगा कि चीन, उत्तर कोरिया को उसकी सुरक्षा के लिए आश्‍वस्‍त करे। इसमें उसकी कूटनीतिक और राजनीतिक परीक्षा भी होगी। उनका यह भी मानना है कि इस क्षेत्र में युद्ध होता है तो इसकी आंच चीन को भी झुलसा सकती है। इसकी वजह यह है कि दोनों देशों की सीमाएं आपस में मिलती हैं, युद्ध होने की सूरत में इसका खामियाजा चीन को भी बराबर उठाना पड़ेगा।

चीन की भूमिका अहम

आब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का भी यही मानना है कि उत्तर कोरिया को वार्ता की मेज पर लाने में चीन सबसे अहम भूमिका निभा सकता है। उनका यह भी कहना है कि जापान को मौजूदा समय में सबसे अधिक खतरा उत्तर कोरिया से ही है, क्‍योंकि उत्तर कोरिया ने पिछले दो मिसाइल टेस्‍ट उसके ही ऊपर से किए हैं।

मजबूरी में उठाया गया कदम

जानकारों के इस रुख से यह बात भी स्‍पष्‍ट होती है कि चीन को उत्तर कोरिया पर दबाव बनाने के लिए कड़े कदम उठाने ही होंगे। चीन के ताजे फैसले को इस दिशा में उसकी मजबूरी भी माना जा सकता है। मजबूरी इसलिए है कि चीन ऐसा करके सही मायने में अपनी रक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है। यहां पर यह भी बात ध्‍यान रखने वाली है कि चीन की सीमा उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया से लगती है। उत्तर कोरिया से भागने वाले लोग भी चीन से होकर ही दक्षिण कोरिया का रुख करते हैं। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि हाल के कुछ महीनों में इस तरह से दक्षिण कोरिया में घुसने वाले लोगों की संख्‍या में कमी आई है। इसकी वजह रिपोर्ट में दक्षिण कोरिया की सीमा पर चौकसी को बताया गया है।