झाबुआ में 17 महीने की बच्ची का वजन 4.5 किलो, होना चाहिए 11 किलो

झाबुआ। ग्राम खेड़ा की 17 महीने की वर्षा को भर्ती जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। उसका वजन सिर्फ साढ़े 4 किलोग्राम है। वो अति कुपोषित बच्चों की श्रेणी में है। सामान्यत: इस उम्र में बच्चे का वजन 11 किलोग्राम से ज्यादा होना चाहिए।

आश्चर्य की बात ये है कि इस उम्र तक आने तक महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले की नजर उस पर नहीं पड़ी। हाल ये हैं कि वर्षा की खाल हडि्डयों से चिपकी दिख रही है। लगता है मांस है ही नहीं। इस स्थिति के लिए जिम्मेदार अधिकारी अजीबोगरीब बयान देते हैं। उनका कहना है, इस मौसम में बच्चे अक्सर बीमार होते हैं। आंकड़ा हर साल बढ़ जाता है।

वर्षा पिता टिहिया भूरिया निवासी खेड़ा कल्याणपुरा का इलाज कराने पहले परिवार वाले पेटलावद, कल्याणपुरा और पिटोल ले गए। पांच महीने से उसकी स्थिति लगातार खराब हो रही है। महिला के गर्भवती होने से लेकर बच्चे के जन्म होने और 6 साल की उम्र होने तक निगरानी करने वाले आंगनवाड़ी के कर्मचारियों को अब जाकर उसके बारे में पता चला।

हालत खराब थी तो फौरन कार्यकर्ता वर्षा के परिवार को लेकर रामा स्वास्थ्य केंद्र पहुंची और यहां से झाबुआ रैफर कर दिया गया। हालांकि ये भी बात सामने आई कि वर्षा के माता-पिता मजदूरी करने गुजरात चले गए थे। वहां से पांच महीने पहले लौटे, लेकिन सवाल फिर भी बना हुआ है कि अभी तक क्या किसी जिम्मेदार को उसकी स्थिति नजर नहीं आई।

25 करोड़ हर साल होते हैं खर्च

जिले में कुपोषण मिटाने और बच्चों को पोषण आहार व कुपोषित बच्चों की तलाश करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग पर सालाना कम से कम 25 करोड़ स्र्पए खर्च होते हैं। इसके अलावा भोपाल और दिल्ली से आने वाले अलग-अलग फंड और सामान भी हैं। सिर्फ वेतन के रूप में 24 करोड़ स्र्पए खर्च हो रहे हैं। इसके बावजूद स्थिति ये है कि तीन वर्षों में जिले में कुपोषण की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। अगस्त 2015 में 22 प्रश बच्चे कुपोषित थे, अगस्त 2016 में 21 प्रश और अगस्त 2017 में भी 21 प्रश बच्चे कुपोषित मिले। संख्या के आधार पर लगातार बढ़ोतरी ही दर्ज की जा रही है।