सपा-बसपा के रुख से संघीय मोर्चे को मिल सकती है मजबूती

सपा-बसपा गठबंधन (SP-BSP alliance) द्वारा कांग्रेस से दूरी बनाए जाने से इन अटकलों को बल मिल रहा है कि भविष्य में यह संघीय मोर्चा का हिस्सा बन सकता है। टीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी मोर्चे की जो मुहिम शुरू की है, उसे उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की इस पहल से बल मिलता दिख रहा है। खबर यह भी है कि गैर कांग्रेसी विकल्प बनने पर वामपंथी दलों की प्राथमिकता उसको समर्थन करने की होगी।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस से भी दूरी बनाने वाले दल भविष्य की केंद्रीय राजनीति में संघीय मोर्चे के साथ खड़े दिखेंगे। इनमें तृणमूल कांग्रेस, बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस के साथ-साथ अब सपा-बसपा के आने की भी संभावना बढ़ गई है। टीआरएस प्रमुख और अखिलेश यादव की आने वाले दिनों में एक मुलाकात होने के भी आसार हैं। सूत्रों का कहना है कि राव अगले दिल्ली दौरे में बसपा प्रमुख मायावती से भी मुलाकात कर सकते हैं।

राव की पहल पर अभी तक जिन दलों ने संघीय मोर्चे में दिलचस्पी दिखाई है, उनमें तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी हालांकि नायडू की तरफ से होने वाली बैठकों में भी कांग्रेस के साथ खड़ी दिखती हैं लेकिन नेतृत्व के सवाल पर वह कांग्रेस के साथ नहीं हैं। अन्य दलों में ओडिशा का बीजद, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस शामिल हैं। इन तीन राज्यों और उत्तर प्रदेश और तेलंगाना की लोकसभा सीटें जोड़ी जाए तो वह करीब 185 सीटें बनती हैं।

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सूत्रों का कहना है कि यदि गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी मोर्चा बनता है तो वामपंथी दल भी उसका हिस्सा बनेंगे। केरल में 19 सीटें हैं। इस प्रकार तीसरे मोर्चे के प्रभाव वाले राज्यों में सीटों की संख्या दो सौ से भी अधिक हो जाती है। अब तक की राजनीतिक स्थितियों में जो आकलन हो रहे हैं, उनमें उपरोक्त क्षेत्रीय दलों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में यह अटकलें भी हैं कि आम चुनावों के बाद संघीय मोर्चा प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा सकता है।