कहीं पानी पर पहरा-कहीं जलसंकट गहरा, भांजियां पूछें- 15 साल बाद भी प्यास क्यों नहीं बुझी ‘मामा’?

भोपाल। गर्मी आते ही प्रदेश के कई हिस्सों, खासकर बुंदेलखंड में जलसंकट गहराने लगा है। आलम ये है कि लोगों को कई-कई किलोमीटर से पानी लाना पड़ता है तो कई जगह सारी जद्दोजहद के बाद भी गंदा पानी पीने के लिए नसीब होता है। कई जगह पानी की समस्या इतनी उग्र हो गई है कि पानी पर भी प्रशासन पहरा दे रहा है।
मध्यप्रदेश में गर्मी के मौसम में पीने के पानी का संकट नई बात नहीं है। विकास के तमाम दावों के बीच पीने के पानी की कमी से लोगों की जिंदगी खत्म हो जाने की घटनाएं प्रदेश में हर बार होती हैं। हर बार पानी के लिए धूप में कई-कई किलोमीटर तक पैदल बेटियों-महिलाओं के जाने वाली तस्वीरें भी आम हो चुकी हैं। इतनी आम कि कई बार इन्हें देखकर हमें बेचैनी भी नहीं होती। क्योंकि इन हालात को हम नियति मान चुके हैं।
लेकिन, उन लोगों का क्या जिन्हें हर रोज पानी के लिए एक जंग लड़नी होती है। टीकमगढ़, दमोह, मुरैना, भिंड, डिंडौरी, मंडला, नरसिंहपुर जैसे कई जिलों में बैठे लोगों की सुबह वैसी नहीं होती जैसी भोपाल में बैठे लोगों की होती है। यहां लोग उठते ही अखबार पढ़ने या ऑफिस जाने की तैयारी नहीं करते बल्कि उठते ही सबसे पहले सोचते हैं कि दो घूंट पीने के पानी का इंतजाम कैसे किया जाए। वो सोचते हैं कि आज पीने के लिए साफ पानी नसीब होगा या फिर नाले के गंदे पानी से काम चलाना होगा। यहां बच्चे सुबह उठकर स्कूल नहीं जाते बल्कि सिर पर बर्तन रखकर पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं।
अभी गर्मी की शुरूआत है और हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि टीकमगढ़ के एक गांव में लोगों को पांच किलोमीटर दूर पानी लेने जाना पड़ता है। ये यूपी बॉर्डर से पानी लाते हैं। वो नल-जल योजना इनके घरों से शायद कई प्रकाशवर्ष दूर है जिसका जिक्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपने हर भाषण में करते हैं। क्योंकि पिछले तीन सालों से इनकी पानी की तलाश इसी तरह यूपी बॉर्डर तक जाकर ही पूरी होती है।
बुंदेलखंड के टीकमगढ़ का हाल तो किसी से छिपा नहीं है, लेकिन इन दिनों दमोह से एक नजारा देखने को मिल रहा है जिसमें सुरक्षाकर्मी वॉटर फिल्टर प्लांट पर पहरा दे रहे हैं। निगम अधिकारियों का कहना है कि पानी बेचने वाले कारोबारी यहां से पानी लेकर जाते हैं जिसके चलते ये सुरक्षा इंतजाम किये गये हैं। इसी तरह मुरैना की सिंघल बस्ती में नगरपालिका जिस पानी की सप्लाई कर रहा है वो इतना गंदा है कि उसे पीने वाला बीमार पड़ जाए।
ऐसे हालात में सरकार के उन तमाम दावों की हवा निकल जाती है जो नल-जल परियोजना के तहत प्रदेश के जलसंकट को हल करने की बात कहते हैं। सरकार की ये नल-जल योजना कागज से बाहर उतनी उजली नहीं है जितना कि सरकार कहती है। यही वजह है कि सूबे के मुखिया और सूबे की बेटियों के मामा यानी शिवराज सिंह से ये भांजियां ये पूछने को मजबूर हैं कि 15 साल बाद भी उनकी प्यास बुझाने का इंतजाम क्यों नहीं कर सके मामा?