लोकसभा के साथ चुनाव में क्यों नहीं जा रहे तीन BJP शासित राज्य?

कुछ समय पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘एक देश एक चुनाव’ की बात प्रमुखता से कह रहे थे, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में इसे लागू कर पाना असंभव होने के नाते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हालांकि ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि ‘मोदी मैजिक’ को देखते हुए बीजेपी शासित 3 राज्य समय पूर्व विधानसभा भंग कर इसी आम चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव में उतर सकते हैं, अब ऐसा होने नहीं हो जा रहा है जो यह दिखाता है कि कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में जीत को लेकर पार्टी आश्वस्त नहीं है.

महाराष्ट्र और हरियाणा की कैबिनेट ने शुक्रवार को हुई बैठक में अपनी-अपनी विधानसभा भंग कराने और लोकसभा चुनाव के साथ राज्य में चुनाव कराने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया. लंबे समय से ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि लोकसभा चुनाव के साथ महाराष्ट्र और हरियाणा समेत झारखंड में विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं, जिस पर अब विराम सा लग गया है.

पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट में एयरस्ट्राइक जैसा बड़ा कदम उठाने के बावजूद केंद्र में सत्ता वापसी के प्रति आश्वस्त नहीं होने को लेकर बीजेपी इन राज्यों में विधानसभा चुनाव को समय से पूर्व नहीं कराने के मूड में है. हालांकि बीजेपी के शीर्ष स्तर के नेता लंबे समय से बीजेपी शासित इन 3 राज्यों में लोकसभा के साथ चुनाव कराने की बात करते रहे हैं क्योंकि यहां पर आम चुनाव के कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं.

महाराष्ट्र और हरियाणा के अलावा झारखंड बीजेपी शासित है जहां पर माना जा रहा था कि बीजेपी विधानसभा भंग कराकर लोकसभा के साथ ही चुनाव मैदान में उतर सकती है. महाराष्ट्र और हरियाणा में इस साल नवंबर में विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है, जबकि झारखंड में अगले साल जनवरी में पूरा होगा.

समय से पूर्व चुनाव के पीछे तर्क यह दिया जा रहा था कि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाकर इन राज्यों में एंटी-इनकम्बैंसी को पीछे छोड़ते हुए दोबारा जीत हासिल कर सकती है. खासकर झारखंड में जहां वर्तमान सरकार के खिलाफ खासा रोष है.

कई चुनौतियों से घिरी केंद्र सरकार

हालांकि एक बात यह भी है कि बालाकोट स्ट्राइक के बाद बीजेपी शासित राज्यों में थोड़ी ऊर्जा मिलती दिख रही थी, लेकिन अब विपक्षी दलों के साथ-साथ पुलवामा में कई शहीदों की विधवाओं की ओर से भी बालाकोट स्ट्राइक के सबूत मांगे जाने से मामला पेचीदा हो गया है. कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी भारत की ओर से जैश-ए-मोहम्मद के ठीकानों को तबाह किए जाने और पाकिस्तान के एफ-16 फाइटर विमान को गिराए जाने के दावे पर सवाल किए हैं. वहीं बालाकोट स्ट्राइक में 250 से 400 आतंकियों के मारे जाने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

सिर्फ बालाकोट स्ट्राइक ही नहीं, इससे पहले राफेल डील विवाद, बढ़ती बेरोजगारी, आतंकवाद और किसानों की खस्ताहाल स्थिति समेत ऐसे ढेरों मुद्दे हैं जिससे केंद्र सरकार घिरी हुई है. ऐसे में महाराष्ट्र और हरियाणा की बीजेपी सरकार के लिए यही एक सही विकल्प था कि वे अपना कार्यकाल पूरा करे.

2004 के उदाहरण से सबक

2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार समय से 6 महीने पहले लोकसभा भंग कराकर चुनाव मैदान में उतरी थी. तब उसे लग रहा था कि देश में वाजपेयी सरकार के पक्ष में लहर बनी हुई है और इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क यह था कि 2003 के अंत में दिसंबर में हिंदी बेल्ट के 4 में से 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी जीत का फायदा उसे लोकसभा चुनाव में मिल सकता है अगर उसे जल्द कराया जाए. लेकिन जब आम चुनाव कराए गए तो रिजल्ट चौंकाने वाले आए और वाजपेयी सरकार को शिकस्त का सामना करना पड़ा.

हालांकि ये 3 राज्य अभी भी काफी कुछ ‘मोदी मैजिक’ के सहारे हैं, क्योंकि इन राज्यों को लगता है कि अगर आम चुनाव में मोदी सरकार को हार मिलती है तो उनकी सरकार को हार का सामना करना पड़ सकता है, और अगर केंद्र में नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो जाते हैं तो इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के परिणामों का असर पड़ेगा और बीजेपी फिर से ‘मोदी मैजिक’ के नाम पर चुनाव जीत सकती है. ऐसे में जीत ही एकमात्र सहारा है.