आखिर क्यों की जाती है परिक्रमा, क्या है इसका महत्व?

हिंदू पूजा पद्धति में देवी-देवता की परिक्रमा करने का विधान है। इसीलिए मंदिरों में परिक्रमा पथ बनाए जाते हैं। सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, अश्वत्थ, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों के अलावा, नर्मदा, गंगा आदि की परिक्रमा भी की जाती है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात देव समान माना गया है। आइये जानते हैं परिक्रमा क्यों जरूरी है, किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा की जाना चाहिए, इसका महत्व क्या है और परिक्रमा करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। मान्यता लोग कहते हैं कि परिक्रमा करनी जरूरी है, लेकिन क्या कभी आपने सोच है कि ऐसा क्यों? परिक्रमा, जिसे संस्कृत में प्रदक्षिणा कहा जाता है, इसे प्रभु की उपासना करने का माध्यम माना गया है। ऋगुवेद में प्रदक्षिणा के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों प्रा और दक्षिणा में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा, यानी परिक्रमा का अर्थ हुआ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं। लेकिन यहां म