नेत्रहीन लाचार बाप का सहारा बनी नाबालिग बेटी,130 किमी खींची बुग्गी

इसे बेबसी कहते हैं. एक नेत्रहीन और लाचार पिता को 130 किलोमीटर तक बुग्गी पर खींचते हुए उसकी बेटियां अपने घर पहुंचीं. सात दिन तक बुग्गी खींचते-खींचते उनके पैर में फफोले पड़ गए.
दिव्यांगों के कल्याण और बेटियों के उत्थान करने का दावा करने वाले अंधे सिस्टम पर वे तमाचा मार गईं. मामला यूपी के बागपत जिले का है. बेहद गरीबी में जी रहे निवाड़ा नामक गांव के सलमू की जिंदगी परीक्षा ले रही थी.
इस नेत्रहीन की एक बेटी कांवड़ यात्रा के दौरान लापता हो गई थी. लाचार बाप को पता चला कि उसकी बेटी हरिद्वार में मिल सकती है. पास में पैसे नहीं थे, लेकिन बेटी के मिलने की उम्मीद थी. इसलिए उसने हरिद्वार जाने का हौसला जुटाया.
घर की बुग्गी में दो बेटियों मीना, मोटी और बेटे को लेकर हरिद्वार पहुंच गया. वहां वह खोई हुई बेटी की खोज में भटकता रहा, लेकिन कुछ पता नहीं चला. इस बीच एक और आफत आ पड़ी. सलमू की बुग्गी का खच्चर चोरी हो गया.
यहीं से शुरू हुई उसकी बेटियों के संघर्ष की कहानी. नाबालिग मीना ने खुद ही बुग्गी खींचने का निर्णय लिया. एक दो दिन नहीं बल्कि सात दिन तक दिव्यांग बाप को बुग्गी में बैठाकर ये बेटियां दो प्रदेशों से गुजरीं, लाखों लोगों ने उनका संघर्ष देखा लेकिन सहायता की बजाय आंख बंद कर ली. अंत में उन्हें शामली में सहायता मिली.
बेटियों के संघर्ष की ऐसी मिसाल कम ही मिलती है
शामली के अमित सैनी और प्रताप राठौर ने प्रशासन को इसकी जानकारी दी. तब तक वह 130 किलोमीटर बुग्बी खींच चुकी थीं. प्रशासन इन बेटियों के हौसले और संघर्ष से पसीज गया. उन्हें खाना खिलवाया. आर्थिक मदद की. खच्चर खरीदकर दिया. इसके बाद बागपत तक करीब 60 किलोमीटर की दूरी उन्होंने खच्चर से तय की.
शामली में प्रशासन में उन्हें खच्चर खरीदकर दिया
जानकारी मिलने के बाद बागपत के एसडीएम विवेक कुमार यादव सलमू की झुग्गी पर पहुंचे. उसे घर और रोजगार के लिए जगह देने का आश्वासन दिया. उन्होंने गायब लड़की की तलाश के लिए पुलिस की मदद दिलवाने का भरोसा दिलाया है. बागपत के समाजसेवी जितेंद्र हुड्डा ने कहा कि बेटियों को इस तरह बुग्गी खींचने पर मजबूर होना सभ्य समाज पर तमाचा है.