कौन हैं लेफ्टिनेंट कर्नल एस. पुरोहित और कैसे चर्चा में आया था ‘हिन्दू आतंकवाद

सुप्रीम कोर्ट ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट के मुख्य आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को जमानत दे दी है। बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने के बाद पुरोहित ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने आर्मी के लिए गुप्तचर के तौर पर काम किया था न कि वे आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे।

पुरोहित की जमानत इस मायने में बेहद अहमियत रखती है, क्योंकि मालेगांव धमाके के बाद पहली बार देश में ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसा शब्द लोगों के सामने आया था। आइए विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं कौन हैं लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित? कैसे चर्चा में आया ‘हिन्दू आतंकवाद’ और पुरोहित को 9 साल बाद मिली जमानत पर क्या कहना है राजनेताओं का।

किस आधार पर 9 साल बाद पुरोहित को मिली जमानत
पिछले हफ्ते पुरोहित की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश आर.के. अग्रवाल और ए.एम. साप्रे की खंडपीठ ने अपने फैसले को सुरक्षित कर लिया था। पिछले हफ्ते हुई सुनवाई के दौरान पुरोहित के लिए कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने बताया कि वे पिछले 9 साल से जेल के अंदर बंद हैं, जबकि अभी तक उनके खिलाफ अपराध साबित नहीं हो पाया है।

साल्वे ने कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर लगाए गए मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत आरोपों को पहले ही हटाया जा चुका है। इसलिए, वे अंतरिक बेल के हकदार है। इससे पहले, स्पेशल मकोका कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि एटीएस ने गलती से पुरोहित समेत दस लोगों पर इस कानून का इस्तेमाल किया था।

पुरोहित की जमानत का एनआईए ने किया विरोध
उधर, सुप्रीम कोर्ट में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की जमानत याचिका का राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कड़ा विरोध किया। एनआईए की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल जनरल महिन्दर सिंह ने कहा कि पुरोहित के खिलाफ उनके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं, जिनसे आरोपों को साबित करने में मदद मिलेगी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने एनआईए और महाराष्ट्र सरकार से पुरोहित की तरफ से लगाई गई जमानत याचिका पर जवाब मांगा था।

साल्वे ने कहा- आतंकी घटनाओं का हाता है राजनीतिकरण
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत के बाद कहा कि देश में आतंकी घटनाओं का राजनीतिकरण किया जाता है। उन्होंने बताया कि मालेगांव विस्फोट को राजनीतिक रंग देना गलत है। साल्वे ने कहा- जब मैंने देखा कि अपर्णा पुरोहित ऐसी विपदा की स्थिति से गुजर रही हैं तो इस केस को उठाने पर मैं विवश हुआ। मेरे अनुभव में मैंने ऐसे कई केस देखे हैं जिनमें राजनीतिक दबाव आपराधिक न्याय व्यवस्था को प्रभावित करता है। लोगों और राजनेताओं को किसी भी मामले की चल रही छानबीन पर अपनी प्रतिक्रियाएं नहीं जाहिर करनी चाहिए।

कांग्रेस ने कहा- अंतरिम बेल से पुरोहित दोषी या निर्दोष साबित नहीं
उधर, लफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को मिली जमानत पर कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है इससे यह जाहिर नहीं होता है कि वह निर्दोष हैं या फिर दोषी। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ये सच है कि सरकार एनआईए के नए चीफ की तलाश नहीं कर रही है, बल्कि मौजूदा चीफ का ही दो बार कार्यकाल बढ़ाया गया है।

सुरजेवाला ने कहा कि ये सच है कि सरकार पहले ही मालेगांव विस्फोट की मुख्य अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट दे चुकी है। इसलिए, पूरी जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठता है। ऐसे में हम ये उम्मीद करते हैं कि न्यायपालिका निष्पक्ष तौर पर काम करेगी और 35 मौत और 150 घायलों को इंसाफ मिलेगा। जबकि, तत्कालानी गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मालेगांव धमाके पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह फैसला दिया गया है, जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।

हिन्दू आतंकवाद को लेकर भाजपा का कांग्रेस पर हमला

भारतीय जनता पार्टी ने कर्नल पुरोहित की जमानत के बाद कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्द का गठन किया था। देश के तत्कालीन गृहमंत्री ने सोनिया गांधी की उपस्थिति में इसका जिक्र किया था। बाद में पी. चिदंबरम ने भी इसे हवा दी थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अमेरिकी राजदूत से कहा था कि उन्हें ‘हिंदू आतंकवाद’ से डर लगता है। संबित पात्रा ने कहा कि आज कांग्रेस की साजिश बेनकाब हो गई।

पूरी जांच परख के बाद कोर्ट ने दिया फैसला
उधर, इस मामले पर केन्द्रीय मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि शीर्ष अदालत ने मामले की पूरी छानबीन के बाद ही पुरोहित को 9 साल बाद जमानत दी है। अगर वे निर्दोष साबित होते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि पुरोहित ने पिछले 9 साल जेल में गुजारे।

29 सितंबर 2008 को हुआ था मालेगांव धमाका
महाराष्ट्र के मालेगांव के अंजुमन चौक तथा भीकू चौक पर 29 सितंबर 2008 को बम धमाके हुए थे। इनमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। इस मामले में महाराष्ट्र एटीएस ने पाया कि ब्लास्ट के पीछे कथित तौर पर कुछ ‘हिन्दुवादी संगठनों’ का हाथ है। इस केस के बाद ही सबसे पहले हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल हुआ था।

चार हजार पन्ने के आरोप पत्र में यह आरोप लगाया गया कि मालेगांव को धमाके के लिए चुनने की वजह थी, वहां पर भारी तादाद में मुस्लिम आबादी। इस धमाके के मुख्य आरोपी के तौर पर प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल को मुख्य अभियुक्त माना गया, जबकि स्वामी दयानंद पांडे को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया।

पुरोहित पर विस्फोटक इंतजाम करने का आरोप
आरोप पत्र में आगे कहा गया कि पांडे ही वह शख्स था, जिसने पुरोहित को विस्फोटक आरडीएक्स का इंतजाम करने को कहा था। जबकि, ठाकुर ने अपनी मोटर साइकिल दी, जिसका उस धमाके में इस्तेमाल किया गया। एक अन्य अभियुक्त अजय राहिरकर ने इस पूरे घटना को अंजाम देने के लिए पैसे का इंतजाम किया तो वहीं षडयंत्र रचने के लिए नासिक के भंसोला मिलिट्री स्कूल में बैठकें की गई थीं। राकेश धावड़े, रमेश उपाध्याय, श्याम लाल साहु, शिव नारायण कलसांगरे, सुधाकर द्विवेदी, जगदीश म्हात्रे और समीर कुलकर्णी भी इस मामले में आरोपी थे।

29 सितंबर 2008: नवरात्रि की शाम को मालेगांव में धमाके से 7 लोगों की हुई मौत। शुरूआती जांच में इस धमाके के पीछे मुस्लिम उग्रवादी संगठनों का शक जताया गया था. हमले की जांच की जिम्मेदारी एंटी टेरर स्क्वेड को सौंपी गई. जिसकी अध्यक्षता हेमंत करकरे कर रहे थे।

कब क्या हुआ:

23 अक्टूबर 2008: साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया

24 अक्टूबर 2008: करीब एक महीने बाद हीरो होंडा बाइक बरामद की गई. जिसमें कम तीव्रता वाला बम लगाया गया था। पुलिस ने सबूतों के आधार पर साध्वी प्रज्ञा, शिव नारायण गोपाल और श्याम भंवरलाल साहू को गिरफ्तार किया था।

4 नवंबर 2008: लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को हमले के लिए आरडीएक्स देने और साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

जुलाई 2009: हमले की जांच के दौरान साध्वी प्रज्ञा की अन्य आतंकी गतिविधियों से कनेक्शन का खुलासा हुआ। इसमें समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, मालेगांव 2006 ब्लास्ट और गुजरात के मोदासा में 2008 के ब्लास्ट शामिल हैं।

2010: बॉम्बे हाईकोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा पर वापस महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) लगा दिया।

अप्रैल 2011: एनआईए को केस सौंपा गया।

अगस्त 2013: एनआईए ने अभियुक्तों को क्लीन चिट दे दी।

15 अप्रैल 2015: अभियुक्तों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिलने की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के मकोका के फैसले को खारिज कर दिया।

नवंबर 2015: स्पेशल कोर्ट ने साध्वी ठाकुर की जमानत याचिका ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा कि साध्वी के खिलाफ भी कुछ सबूत मिले हैं।

15 अप्रैल 2016: मकोका कोर्ट ने 9 आरोपियों को इस मामले से मुक्त कर दिया। क्योंकि एनआईए ने उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं होने की बात कही थी।

28 जून 2016: स्पेशल कोर्ट ने साध्वी ठाकुर की जमानत याचिका खारिज की।

14 अक्टूबर 2016: स्पेशल कोर्ट की तरफ से नकारात्मक जवाब मिलने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

25 अप्रैल 2017: बॉम्बे हाईकोर्ट ने आखिरकार 8 साल, 6 महीने और दो दिन जेल में बिताने के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जमानत दे दी।