इन वजहों से जीत गई BJP अपनी ही रणनीति में उलझी ‘आप’
दिल्ली एमसीडी के चुनावों ने एक ओर बीजेपी को बड़ा तोहफा दिया तो केंद्र सरकार से लगातार टकराव के मूड में रहे अरविंद केजरीवाल को करारा झटका लगा है। इस जीत और हार के मायने इनके परिणामों से कहीं ज्यादा हैं। खासतौर पर केजरीवाल और केंद्र सरकार के बीच संबंधों के लिहाज से देखें तो एमसीडी में बीजेपी के आने के बाद वह और कमजोर होंगे। जानें, इस चुनाव में क्या बीजेपी के पक्ष में रहा और किस मोर्चे पर ‘आप’ को मिली मात।
ब्रैंड मोदी पर लोगों ने जताया भरोसा: यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को मिली भारी जीत के बाद राजधानी में भी लोगों ने ब्रैंड मोदी पर भरोसा किया है। पीएम नरेंद्र मोदी की पॉजिटिव इमेज और हाई रेटिंग ने बीजेपी उम्मीदवारों की राह को आसान कर दिया। चुनाव भले ही एमसीडी का था, लेकिन केंद्र के नाम पर पार्षद उम्मीदवारों को भी फायदा मिला।
सिटिंग पार्षदों को हटाकर चला मास्टरस्ट्रोक: बीते 10 साल बीजेपी एमसीडी की सत्ता पर काबिज थी। सत्ता विरोधी लहर की बात भी कही जा रही थी, लेकिन बीजेपी ने किसी भी मौजूदा पार्षद को टिकट ने देकर इस फैक्टर को ही एक तरह से खत्म कर दिया। नए चेहरों की वजह से करप्शन और काम न करने की शिकायतें खत्म सी हो गईं।
पूर्वांचल फैक्टर की बड़ी भूमिका: बीजेपी ने चर्चित भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ी संख्य में बसे पूर्वांचली और बिहारी वोटरों को लुभाया। मनोज तिवारी के साथ रविकिशन ने भी लगातार प्रचार किया और विधानसभा चुनावों में ‘आप’ के खेमे में गए पूर्वांचली मतदाताओं को बीजेपी से जोड़ने में अहम रोल अदा किया।
कांग्रेस के उभार से मिली मदद: कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में 9 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार वह 21 पर्सेंट वोट पाने में सफल रही। इस तरह एमसीडी चुनाव का मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय हो गया। कांग्रेस के खाते में गए ज्यादातर वोट ‘आप’ के थे। इस तरह बीजेपी को आप और कांग्रेस के बीच वोट बंटने का बड़ा फायदा मिला। इसके अलावा बीजेपी ने वोटरों के समक्ष निकाय चुनावों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को रखा। इससे चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल हो गया।
केजरीवाल की आक्रामकता: अरविंद केजरीवाल लगातार पीएम नरेंद्र मोदी, एमसीडी चुनाव और एलजी पर हमला बोल रहे थे। इससे पब्लिक में उनकी लगातार विवादों में रहने और हमलावर होने की छवि बनी। जनता में उनकी यह इमेज बनी कि इससे काम करना मुश्किल होगा।
दूर हो गया मिडल क्लास: 2015 के विधानसभा चुनाव में मध्यम वर्ग के बड़े तबके ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था। लेकिन इस बार वह छिटक गया। पिछली बार ‘आप’ को 54 पर्सेंट वोट मिले थे, जबकि इस बार सिर्फ 26 फीसदी से ही संतोष करना पड़ा।
भ्रामक रणनीति पड़ी भारी: केजरीवाल के टीवी ऐड में कहा जा रहा था कि हमने जो कहा, सो किया। लेकिन, असल में वह बीजेपी पर काम न करने देने के आरोप लगा रहे थे। इसके अलावा एमसीडी के 10 साल के कामकाज पर लगातार हमला बोलने की बजाय ‘आप’ ने ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया।