महाराष्ट्रा लेबर डे: labour day

सोजन्य से : ईखबर | www.ekhabar.in
विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर / कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारीयों) की विशेष भूमिका होती है।
श्रमिक दिवस का इतिहास
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस जिसे श्रमिक दिवस भी कहा जाता है, को मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमरीका की मज़दूर यूनिअनों ने काम का समय आठ घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल दौरान के साथ शिकागो की हेय मार्केट में अज्ञात लोगो ने बम धमाका किया था। कार्यवाही के तौर पर पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और सात मज़दूर मार दिए। मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करन संबंधित क़ानून लागू है। हमारे समाज मे मजदूर वेर्ग को हमेशा गरीव इंसान समझा जाता है, धूप मे मजदूरी करने वालों को ही हम मजदूर समझते है, इसके विपरीत मजदूर समाज का वह अभिन्न अंग है ज समाज मजबूत और परिपक्क्व बनाता है।
मजदूर दिवस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
1 मई को दुनिया के कई देश मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है. वहीं, कनाडा में मजदूर दिवस सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है.जानिए मजदूर दिवस से संबंधित कई महत्वपूर्ण फैक्ट्स.
01 मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई. यह मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था.
02 मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया. इस अवसर पर मजदूरों ने भाषण दिए.
03 दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस ‘मई डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी. मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे. इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया.
04 अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि लेबर डे का फाउंडर कौन था? कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर के फाउंडर पीटर जे. मैकगुरी ने इसकी शुरुआत की थी. वहीं, कुछ अन्य लोगों का मानना है कि मैथ्यु मैगुरी ने इसकी शुरुआत की.
05 ऑस्ट्रेलिया की टेरिटरी वाले न्यू साउथ वेल्स और साउथ ऑस्ट्रेलिया में मजदूर दिवस अक्टूबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस / International Workers’ Day in Hindi अथवा मजदूर दिवस को इन नामों से भी पुकारा जाता है-
श्रम दिवस, श्रमिक दिवस, मई दिवस, May Day ( मे डे), Labour Day ( लेबर डे ), International Workers’ Day
श्रमिक दिवस अब कोई मायने नहीं रखता मजदूर के लिये मजदूर दिवस?
आज इस कम्प्यूटर युग में मजदूर को मजदूरी के लाले पडे है। आज मजदूर हर रोज सुबह शाम बढती महंगाई से परेशान है ऐसा नहीं की इस महगॅाई की जद में सिर्फ मजदूर ही आया है इस महगॉई रूपी ज्वालामुखी की तपिश में हर कोई झुलस रहा है छटपटा रहा है खाद्यान्न, सब्जी , फल, व तेलो के दाम इस एक साल में लगभग पचास प्रतिशत बढे है खाने पीने की चीजों के दाम बेतहाशा बढ रहे है ऐसे में अगर 1 मई को मजदूर दिवस मनाये तो शाम को मजदूर के घर चूल्हा कैसे जले। रूे ही कारण है कि आज मजदूर दिवस मात्र औपचारिकता बन कर रह गया। कल तक बडी बडी मिले थी, कल कारखाने थे, कल कारखानो एंव औधोगिक इकाईयों में मशीनो का शोर मचा रहता था मजदूर इन मशीनों के शोर में मस्त मौला होकर कभी गीत गाता तो कभी छन्द दोहे गुनगुनाता था। पर आज ये सारी मिले कल कारखाने मजदूरों की सूनी ऑखो और बुझे चूल्हों की तरह वीरान पडे है। जिन यूनियने के लिये मजदूरो ने सडको पर अपना लहू पानी की तरह बहाया था उन सारी यूनियने के झन्डे मजदूरो के बच्चो के कपडों की तरह तार तार हो चूके है। फिर भी 1 मई को हम लोग अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ‘‘मजदूर दिवस ’’ का आयोजन करते है। इस दिन केन्द्र और राज्य सरकारो द्वारा मजदूरो के कल्याणार्थ अनेक योजनाये शुरू की जाती है पर आजादी के 65 साल बाद भी ये सारी योजनाये गरीब मजदूर को एक वक्त पेट भर रोटी नहीं दे सकी।
आज इस कम्प्यूटर युग ने मशीनों की रफ्तार तो तेज कर दी परन्तु कल कारखानो और औधोगिक इकाईयो की रौनक छीन ली मजदूरो से भरी रहने वाली ये मिले कारखाने कम्प्यूटरीकृत होने से एक ओर जहॉ मजदूर बेरोजगार हो गया वही ये इकाईया बेरौनक हो गई। या यू कहा जाये की मजदूर के बगैर बिल्कुल विधवा सी लगती है। मजदूर आज भी मजदूर है चाहे कल उसने ताज महल बनाया हो ताज होटल बनाया हो या फिर संसद भवन,उसे आज भी सुबह उठने पर सब से पहले अपने बच्चो के लिये शाम की रोटी की फिक्र होती है।
श्रमिक दिवस का महत्व | world labour day importance
कहने को तो हम पूरी दुनिया में एक मई को श्रमिक दिवस (Labour day) के रूप में मनाते हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज ज्यादातर श्रमिक अपने इस खास दिन के महत्व और इतिहास के बारे में नहीं जानते. आज भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा मजदूरों को यह तक नहीं मालूम कि श्रमिक दिवस होता क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है. उन्हें तो दो वक्त की रोटी जुटाने के आगे फुर्सत ही कहां हैं कि वह समझ सकें कि श्रमिक दिवस है क्या?
भारत में श्रमिक आंदोलन का गौरवमयी अतीत रहा है. 70 और 80 के दशक में देश में कई मजबूत आंदोलन श्रमिकों की अगुवाई में हुए, लेकिन वर्ष 1990 के बाद हिंदुस्तान में श्रमिक आंदोलन को साजिशन कमजोर करने की कोशिश की गई.
पूंजीपति वर्ग और सरकार अपने नापाक मंसूबे में कामयाब भी हुए, लेकिन हकीकत यह भी है कि श्रमजीवी वर्ग से जुड़े लोगों को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता. जरूरत है एक बार फिर श्रमिक कानून को मजबूत करने की ताकि श्रमिकों के साथ हो रहे अन्याय को रोका जा सके. इसलिए मजदूरों को श्रमिक दिवस के महत्व को समझते हुए एक बार फिर अलग-अलग खेमों में बंटकर लड़ने की बजाय अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर लड़ने की आवश्यकता है.

मजदूर दिवस पर निबंध
भारत देश में मजदूरों की मजदूरी के बारे में बात की जाए तो यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है। आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्टरियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है। पैसों के अभाव से मजदूर के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।
भारत में अशिक्षा का एक कारण मजदूरों को कम मजदूरी दिया जाना भी है। आज भी देश में ऐसे मजदूर हैं, जो 1500-2000 रु. की मासिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार से मानवता का उपहास है। बेशक, इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किए हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोई कार्रवाई की जाती है।
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा।
फैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन 4.30 घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने कड़े कानून होने के बाद भी बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता हैं और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा, जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुंच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरूरत है और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। इसके साथ ही बड़ी उम्र के मजदूरों को कोई भी बाल मजदूर दिखे तो उन्हें खुद बाल मजदूरी रोकने के लिए आगे आना चाहिए और बाल मजदूरी का विरोध करना चाहिए। अगर देश से बाल मजदूरी रुकेगी तो मजदूर दिवस मनाना भी तभी सार्थक होगा।
‘मजदूर दिवस’ के अवसर पर संपूर्ण राष्ट्र और समाज को राष्ट्र और समाज की प्रगति, समृद्धि तथा खुशहाली में दिए गए श्रमिकों के योगदान को नमन करना चाहिए। देश के उत्पादन में वृद्धि और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो उच्च मानक हासिल किए गए हैं, वे हमारे श्रमिकों के अथक प्रयासों का ही नतीजा हैं। इसलिए राष्ट्र की प्रगति में अपने श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानकर सभी देशवासियों को उसकी सराहना करनी चाहिए। इसके साथ ही मजदूर दिवस के अवसर पर देश के विकास और निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाने वाले लाखों मजदूरों के कठिन परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का सम्मान करना चाहिए और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए संपूर्ण राष्ट्र और समाज को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
– मनीषा सिंह राजपूत (इंडिया आज) | MANISHA SINGH RAJPUT (www.indiaaaj.com)